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डर्ड

वन्धनसे मुक्त कर दे। पुरोहितके द्वारा अभिषेक

होनेसे पहले इन्द्र देवताकी शान्ति करानी चाहिये।

अभिषेकके दिन राजा उपवास करके बेदीपर

स्थापित की हुई अग्निमें मन्त्रपाठपूर्वक हवन

करे। विष्णु, इन्द्र, सविता, विश्वेदेव और सोम-

देवतासम्बन्धी वैदिक ऋचाओंका तथा स्वस्त्ययन,

शान्ति, आयुष्य तथा अभय देनवाले मन्त्रोंका पाठ

करे ॥ २--८॥

तत्पश्चात्‌ अग्निके दक्षिण किनारे अपराजिता

देवी तथा सुवर्णमय कलशकी, जिसमें जल गिरानेके

लिये अनेकों छिद्र बने हुए हों, स्थापना करके

चन्दन और फूलोंके द्वारा उनका पूजन करे। यदि

अग्निकी शिखा दक्षिणावर्त हो, तपाये हुए सोनेके

समान उसकी उत्तम कान्ति हो, रथ और मेघके

समान उससे ध्वनि निकलती हो, धुआँ बिलकुल

नहीं दिखायी देता हो, अग्निदिव अनुकूल होकर

हविष्य ग्रहण करते हों, होमाग्निसे उत्तम गन्ध

फैल रही हो, अग्निसे स्वस्तिकके आकारकी

लपटें निकलती हों, उसकी शिखा स्वच्छ हों

और ऊँचेतक उठती हो तथा उसके भीतरसे

चिनगारियाँ नहीं छूटती हों तो ऐसी अग्नि-ज्वाला

श्रेष्ठ एवं हितकर मानी गयी है ॥ ९--११॥

राजा और आगके मध्यसे बिल्ली, मृग तथा

पक्षी नहीं जाने चाहिये। राजा पहले पर्वतशिखरकी

मृत्तिकासे अपने मस्तककी शुद्धि करें। फिर

बाँबीकी मिट्टीसे दोनों कान, भगवान्‌ विष्णुके

मन्दिरकी धूलिसे मुख, इन्द्रके मन्दिरकी मिट्टीसे

ग्रीवा, राजाके आँगनकी मृत्तिकासे हृदय, हाथीके

दाँतोंद्वारा खोदी हुई मिट्टीसे दाहिनी बाह, बैलके

सींगसे उठायी हुई मृत्तिकाद्वारा बायीं भुजा,

पोखरेकी मिट्टीसे पीठ, दो नदियोंके संगमकी

मृत्तिकासे पेट तथा नदीके दोनों किनारोंकी

मिट्टीसे अपनी दोनों पसलियोंका शोधन करे।

वेश्याके दरवाजेकी मिट्टीसे राजाके कटिभागकौ

शुद्धि की जाती है, यज्ञशालाकी मृत्तिकासे वह

दोनों ऊरु, गोशालाकी मिट्टीसे दोनों घुटनों,

घुड़सारकी मिट्टीसे दोनों जाँघ तथा रथके पहियेकी

मृत्तिकासे दोनों चरणोंकी शुद्धि करे। इसके बाद

पञ्चगव्यके द्वारा राजाके मस्तककी शुद्धि करनी

चाहिये। तदनन्तर चार अमात्य भद्रासनपर बैठे

हुए राजाका कलशोंद्वाग अभिषेक करें। ब्राह्मणजातीय

सचिव पूर्व दिशाकी ओरसे घृतपूर्णं सुवर्णकलशद्वारा

अभिषेक आरम्भ करे। क्षत्रिय दक्षिणी ओर

खड़ा होकर दूधसे भरे हुए चाँदीके कलशसे,

वैश्य पश्चिम दिशामें स्थित हो ताम्र कलश एवं

दहीसे तथा शुद्र उत्तरकी ओरसे मिट्टीके घड़ेके

जलसे राजाका अभिषेक करे ॥ १२--१९॥

तदनन्तर बहूचों (ऋग्वेदी विद्वानों ) -पें श्रेष्ठ

ब्राह्मण मधुमे और ' छन्दोग' अर्थात्‌ सामवेदी

विप्र कुशके जलसे नरपतिका अभिषेक करे ।

इसके वाद पुरोहित जल गिरानेके अनेकों छिद्रोंसे

युक्त (सुवर्णमय) कलशके पास जा, सदस्योंके

बीच विधिवत्‌ अपग्रिरक्षाका कार्य सम्पादन

करके, राज्याभिषेकके लिये जो मन्त्र बताये

गये हैं, उनके द्वारा अभिषेक करे। उस

समय ब्राह्मणोंको वेद- मन्त्रोच्वारण करते रहना

चाहिये। तत्पश्चात्‌ पुरोहित वेदीके निकट जाय

और सुवर्णके बने हुए सौ छिद्रोंवाले कलशसे

अभिषेक आरम्भ करे। "या ओषधी:० '-- इत्यादि

मन्त्रसे ओषधियोंद्वार, ' अधेत्युक्त्वा:० '--- इत्यादि

मन्त्रोंसे गन्धोंद्वारा, 'पुष्पकती:० '-- आदि मन्त्रसे

फूलोंद्वारा, 'ब्राह्मण:० '-- इत्यादि मन्त्रसे बीजोंद्वारा,

"आशुः शिशानः०' आदि मन्त्रसे रत्लोंद्वारा तथा

^ये देवा: ० '-- इत्यादि मन्त्रसे कुशयुक्त जलोंद्वारा

अभिषेक करे। यजुर्वेदी और अथर्ववेदी ब्राह्मण

"गन्धद्वारां दुराधर्षा '-- इत्यादि मन्त्रसे गोरोचनद्वारा

मस्तक तथा कण्ठमें तिलक करे। इसके बाद

अन्यान्य ब्राह्मण सब तीर्थोकि जलसे अभिषेक

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