लिये सरसोंका, ब्रह्मतेजकी प्राप्तिके लिये दुग्धका,
पुत्रकी कामना करनेवाला दधिका ओर अधिक
धान्य चाहनेवाला अगहनीके चावलका हवन
करे। ग्रहपीड़ाकौ शान्तिके लिये सैर वृक्षक
समिधा्ओंका, धनकी कामना करनेवाला
बिल्वपत्रोंका, लक्ष्मी चाहनेवाला कमल-
पुष्पोका, आरोग्यका इच्छुक और महान् उत्पातसे
आतद्भित मनुष्य दूर्वाका, सौभाग्याभिलाषौ
गुग्गुलका और विद्याकामी स्वीरका हवन करे ।
दस हजार आहुतियोंसे उपर्युक्त कामनाओंकी
सिद्धि होती है और एक लाख आहुतियोंसे
साधक मनो5भिलषित वस्तुको प्राप्त करता है।
एक करोड़ आहतियोंसे होता ब्रह्महत्याके महापातकसे
मुक्त हो अपने कुलका उद्धार करके श्रीहरिस्वरूप
हो जाता है। ग्रह-यज्ञ-प्रधान होम हो,
अर्थात् ग्रहोंकी शान्तिके लिये हवन किया जा
रहा हो तो उसमें भी गायत्री-मन्तरसे दस हजार
आहुतियाँ देनेपर अभीष्ट फलकी सिद्धि होती
है ॥ १९--३०॥
संध्या-चिधि
गायत्रीका आवाहन करके 3>कारका उच्चारण
करना चाहिये। गायत्री मन्त्रसहित उॐ&कारका
उच्चारण करके शिखा बोधे । फिर आचमन करके
हदय, नाभि और दोनों कंधोंका स्पर्श करे।
प्रणवके ब्रह्मा ऋषि, गायत्री छन्द, अग्नि अथवा
परमात्मा देवता हैं। इसका सम्पूर्णं क्मोकि आरम्भमें
प्रयोग होता है'। निम्नलिखित मन्त्रसे गायत्री
देवीका ध्यान करे-
शुक्ला चाग्निमुखी दिव्या कात्यायनसगोत्रजा ।
त्रैलोक्यवरणा दिव्या पृथिव्याधारसंयुता ॥
अक्षसूत्रधरा देवी पद्मासनगता शुभा॥
तदनन्तर निम्नङ्कित मन्त्रसे गायत्री देवीका
आवाहन करे-
*ॐ तेजोऽसि महोऽसि बलमसि भाजोऽसि
देवानां धामनामाऽसि। विश्वमसि विश्वायुः सर्वमसि
सर्वायुः ओम् अभि भूः।'
आगच्छ वरदे देवि जपे मे संनिधौ भव।
गायन्तं त्रायसे यस्माद् गायत्री त्वं ततः स्मृता ॥
समस्त व्याहतियोके ऋषि प्रजापति ही हैं; वे
सब - व्यष्टि ओर समष्टि दोनों रूपोंसे परब्रह्मस्वरूप
एकाक्षर 3»कारमें स्थित है ।
सप्तव्याहतियोंके क्रमश: ये ऋषि है - विश्वामित्र,
जमदग्नि, भरद्वाज, गौतम, अत्रि, वसिष्ठ तथा
कश्यप। उनके देवता क्रमशः ये हैं--अग्नि,
वायु, सूर्य, वृहस्पति, वरुण, इन्द्र और विश्वदेव ।
गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, वृहती, पङ्क, त्रिष्टप्
और जगती -ये क्रमशः सात व्याहतियोके छन्द
हैं। इन व्याइतियोंका प्राणायाम और होमे
विनियोग होता हैः।
ॐ आपो हि टा मयो भुवः, ॐ ता न ऊर्जे
दधातन, ॐ महेरणाय चक्षसे, ॐ यो चः
शिवतमो रसः, ॐ तस्य भाजयतेह नः, ॐ
उशतीरिव मातरः, ॐ तस्मा आरं गमाम वः, ॐ
यस्य क्षयायः जिन्वथ, ॐ आपो जनयथा च न: ।
इन तीन ऋचाओंका तथा “ॐ द्रुपदादिव
मुमुचानः स्विन्नः स््रातो प्रलादिव। पूतं
पवित्रेणेवाज्यमापः शुन्धन्तु यैनसः।' इस
मन्त्रका "हिरण्यवर्णाः शुचयः ' इत्यादि पावमानी
ऋचाओंँका उच्चारण करके (पवित्रं अथवा
१. कयस्य ब्रह्मा ऋषिर्गायत्री खन्दौऽगिनर्देवता शुक्लो वर्ण; सर्पकर्मारम्भे बितिमोग:।
२, सत्तव्याहतीनां वि
दाहिने हाथकी अकुतो जलके आठ छीरि
ऊपर उछाले। जीवनभरके पाप नष्ट हो जाते
हैं॥ ३१--४१॥
ऋषयो गायशत््युष्णिगनुष्ब्बृहतीपक्लित्रिष्टब्जगत्परठन्दांस्यग्ति-
बाय्वादित्ययृहस्पतिवरुणेद्रविश्वेदेवा देवता अनादिष्टप्रायक्षिते प्राणायामे बिनियोग:।