स्वर्गलोकको जाता है। वस्त्रदानसे आयु, आरोग्य
और अक्षय स्वर्गकौ प्राप्ति होती है। धान, गेहूँ,
अगहनीका चावल और जौ आदिका दान करनेवाला
स्वर्गलोकको प्राप्त होता है। आसन, धातुनिर्मित
पात्र, लवण, सुगन्धियुक्त चन्दन, धृप-दीप, ताम्बूल,
लोहा, चाँदी, रत्न और विविध दिव्य पदार्थोका
दान देकर मनुष्य भोग और मोक्ष भी प्राप्त करता
है। तिल और तिलपात्रका दान देकर मनुष्य
स्वर्ग-सुखका भागी होता है। अन्नदानसे बढ़कर
कोई दान न तो है, न था और न होगा ही। हाथी,
अश्व, रथ, दास-दासी और गृहादिके दान-ये
सब अन्नदानकी सोलहवीं कलाके समान भी नहीं
हैं। जो पहले बड़ा-से-बड़ा पाप करके फिर
अन्नदान कर देता है, वह सम्पूर्ण पापोंसे छूटकर
अक्षय लोकोंकों पा लेता है। जल और प्याऊका
दान देकर मनुष्य भोग और मोक्ष-दोनोंकों सिद्ध
कर लेता है। (शीतकालमें) मार्ग आदिमे अग्नि
और काष्ठका दान करनेसे मनुष्य तेजोयुक्त होता है
और स्वर्गलोकमें देवताओं, गन्धर्वो तथा अप्सराओंद्वारा
विमानरमे सेवित होता दै ॥ ४०--४७॥
घृत, तैल और लवणका दान देनेसे सब कुछ
मिल जाता है। छत्र, पादुका ओर काष्ट आदिका
दान करके स्वमिं सुखपूर्वक निवास करता है।
प्रतिपदा आदि पुण्यमयी तिथियोंमें, विष्कुम्भ
आदि योगो, चैत्र आदि मासमे, संवत्सरारम्भमें
और अश्विनी आदि नक्षत्रोंमें विष्णु, शिव, ब्रह्मा
तथा लोकपाल आदिकी अर्चना करके दिवा गया
दान महान् फलप्रद है। वृक्ष, उद्यान, भोजन,
वाहन आदि तथा पैरोंमें मालिशके लिये तेल
आदि देकर मनुष्य भोग और मोक्षको प्राप्त कर
लेता है॥ ४८--५० ॥
इस लोकमें गौ, पृथ्वी और विद्याका दान--
ये तीनों समान फल देनेवाले हैं। वेद-विद्याका
दान देकर मनुष्य पापरहित हो ब्रह्मलोकमें प्रवेश
करता है। जो (योग्य शिष्यको) ब्रह्मज्ञान प्रदान
करता है, उसने तो मानो सप्तद्वीपवती पृथ्वीका
दान कर दिया। जो समस्त प्राणियोंकों अभयदान
देता है, वह मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर लेता है।
पुराण, महाभारत अथवा रामायणका लेखन करके
उस पुस्तकका दान करनेसे मनुष्य भोग और
मोक्षकी प्राप्ति कर लेता है। जो वेद आदि शास्त्र
और नृत्य-गीतका अध्यापन करता है, वह
स्वर्गगामी होता है। जो उपाध्यायको वृत्ति और
छात्रोंको भोजन आदि देता है, उस धर्म एवं
कामादि पुरुषार्थोंके रहस्यदर्शी मनुष्यने क्या नहीं
दे दिया'॥ ५१--५५॥
सहस्र वाजपेय यज्ञोंमें विधिपूर्वक दान देनेसे
जो फल होता है, विद्यादानसे मनुष्य वह सम्पूर्ण
फल प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी संदेह
नहीं है। जो शिवालय, विष्णुमन्दिर तथा सूर्यमन्दिस्में
ग्रन्थवाचन करता है, वह सभी दानोंका फल प्राप्त
करता है'। त्रैलोक्यमे जो ब्राह्मणादि चार वर्ण
और ब्रह्मचर्यादि चार आश्रम हैं, वे तथा ब्रह्मा
आदि समस्त देवगण विद्यादानमें प्रतिष्ठित हैं।
विद्या कामधेनु है और विद्या उत्तम नेत्र है।
गान्धर्व आदि उपबेदोंका दान करनेसे मनुष्य
गन्धर्वोंके साथ प्रमुदित होता है, वेदाड्रोंके दानसे
स्वर्गलोकको प्राप्त करता है और धर्मशास्त्रके
दानसे धर्मके सांनिध्यको प्राप्त होकर दाता
प्रमुदित होता है। सिद्धान्तोकि दानसे मनुष्य
निस्संदेह मोक्ष प्राप्त करता है। पुस्तक-प्रदानसे
विद्यादानके फलकी प्राप्ति होती है। इसलिये
शास्त्रों और पुराणोंका दान करनेवाला सब
कुछ प्राप्त कर लेता है। जो शिष्योंको शिक्षादान
६. बृत्ति दघ्थाद्पाध्याये छात्राणां भोजनादिकम्।किपदत्तं भवेत्तेन धर्मकामादिदर्शिता॥ (२११५५)
२. शिवालये विष्णुगृहे सूर्यस्य भवतरे हथो। सर्वदानप्रदः स॒॒स्यात् पुस्तक वाचयेत्तु यः॥ (२११।५७)