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संतुष्ट होते हैं। नर शर्ट! अन्य पुष्प तो पूजाके बाहा

उपकरण हैं, श्रीविष्णु तो भक्ति एवं दयासे

समन्वितं भाव -पुष्पोद्रारा पूजित होनेपर परितुष्ट

होते है ॥ १६--१९॥

जल वारुण पुष्प है; घृत, दुग्ध, दधि सौम्य

पुष्प हैं; अन्नादि प्राजापत्य पुष्प हैं, धूप-दीप

आग्नेय पुष्प हैं, फल-पुष्पादि पञ्चम वानस्पत्य

चन्दन वायव्य कुसुम हैं, श्रद्धादि भाव वैष्णव प्रसून

हैं। ये आठ पुष्पिकाएँ हैं, जो सब कुछ देनेवाली

हैं। आसन (योगपीठ), मूर्ति-निर्माण, पञ्चाङ्गन्यास

तथा अष्टपुष्पिकाएँ--ये विष्णुरूप हैं। भगवान्‌

श्रोहरि पूर्वोक्तं अष्टपुष्पिकाद्वारा पूजन करनेसे प्रसन्न

होते हैं। इसके अतिरिक्त भगवान्‌ श्रीविष्णुका " वासुदेव"

आदि नामोंसे एवं श्रीशिवका 'ईशान' आदि नाम-

पुष्प हैं, कुशमूल आदि पार्थिव पुष्य हैं; गन्ध- | पुष्पोंसे भी पूजन किया जाता है ॥ २०--२३ ॥

इस प्रकार आदि आण्तेय महापुद्रणमें 'प्रृष्प्रध्धाय ” नामक

दो सौ दोवाँ अध्याय पू हुआ॥ २०२॥

दो सौ तीनवाँ अध्याय

नरकोका वर्णन

अग्निदेव कहते हैं-- वसिष्ठ! अब मैं नरकोंका

वर्णन करता हूँ। भगवान्‌ श्रीविष्णुका पुष्पादि

उपचारोंसे पूजन करनेवाले नरकको नहीं प्राप्त

होते। आयुके समाप्त होनेपर मनुष्य न चाहता

हुआ भी प्राणोंसे बिछुड़ जाता है। देहधारी जीव

जल, अग्नि, विष, शस्त्राघात, भूख, व्याधि या

पर्वतसे पतन--किसी-न-किसी निपित्तको पाकर

प्राणोंसे हाथ धो बैठता है। वह अपने कमेकि

अनुसार यातनां भोगनेके लिये दूसरा शरीर

ग्रहण करता है। इस प्रकार पापकर्म करनेवाला

दुःख भोगता है, परंतु धर्मात्मा पुरुष सुखका भोग

करता टै । मृत्युके पश्चात्‌ पापी जीवको यमदूत

बड़े दुर्गम मार्गसे ले जाते हैं और वह यमपुरीके

दक्षिण द्वारसे यमराजके पास पहुंचाया जाता है ।

वे यमदूत बड़े डरावने होते हैं। परंतु धर्मात्मा

मनुष्य पश्चिम आदि द्वारोंसे ले जाये जाते है । वहाँ

पापी जीव यमराजकी आज्ञासे यमदूतोंद्वारा नरकोंमें

गिराये जाते है, किंतु वसिष्ठ आदि ऋषियोंद्वारा

प्रतिपादित धर्मका आचरण करनेवाले स्वर्गमें ले

जाये जाते हैं। गोहत्यारा महावीचि' नामक

नरकर्मे एक लाख वर्षतक पीडित किया जाता है ।

ब्रह्मघाती अत्यन्त दहकते हुए " ताग्रकुम्भ' नामक

नरकमें गिराये जाते हैं और भूमिका अपहरण

करनेवाले पापीको महाप्रलय कालतक "रौरव-

नरक'में धीरे-धीरे दुःसह पीड़ा दी जाती है।

स्त्री, बालक अथवा वृद्धोंका वध करनेवाले पापी

चौदह इन्द्रोंके राज्यकालपर्यन्त 'महारौरब' नामक

रौद्र नरकमें क्लेश भोगते हैं। दूसरोंके घर और

खेतको जलनेवाले अत्यन्त भयंकर “महारौरव'

नरकमें एक कल्पपर्यन्त पकाये जाते हैं। चोरी

करनेवालेको “तामिस्र' नामक नरकमें गिराया

जाता है। इसके बाद उसे अनेक कल्पोंतक

यमराजके अनुचर भालोंसे बींधते रहते हैं और

फिर 'महातामिस्तर' नरकमें जाकर बह पापी सपो

और जोकोंद्वारा पीड़ित किया जाता है। मातृघाती

आदि मनुष्य 'असिपत्रवन' नामक नरकमें गिराये

जाते हैं। वहाँ तलवारोंसे उनके अङ्ग तबतक काटे

जाते हैं, जबतक यह पृथ्वी स्थित रहती है। जो

इस लोकमें दूसरे प्राणियोंक इदयको जलाते हैं,

वे अनेक कल्पोतक “करम्भवालुका' नरकमें

जलती हुई रेतमें भुने जाते हैं। दूसरोंको बिना

दिये अकेले मिष्टात्न भोजन करनेवाला 'काकोल'

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