Home
← पिछला
अगला →

बह सब कुछ प्राप्त कर लेता है। चातुर्मास्यमें

दीपदान करनेवाला विष्णुलोकको और कार्तिके

दीपदानं करनेवाला स्वर्गलोकको प्राप्त होता है।

दीपदानसे बढ़कर न कोई ब्रत है, न था और न

होगा ही। दीपदानसे आयु और नेत्रज्योतिको

प्राति होती है। दीपदानसे धन और पुत्रादिकी भी

प्राप्ति होती है। दीपदान करनेवाला सौभाग्ययुक्त

होकर स्वर्गलोकमें देवताओंद्वारा पूजित होता है।

विदर्भराजकुमारी ललिता दीपदानके पुण्यसे ही

राजा चारुधर्माकी पत्नी हुई और उसकी सौ

रानियोंमें प्रमुख हुई। उस साध्वीने एक बार

विष्णुमन्दिरमें सहस्त दीपोंका दान किया।

इसपर उसकी सपत्नियोंने उससे दीपदानका

माहात्म्य पूछा। उनके पूछनेपर उसने इस प्रकार

कहा ~ ॥ १--५॥

ललिता बोली - पहलेकी बात है, सौवीरगजके

यहाँ मैलेय नामक पुरोहित थे। उन्होने देविका

नदीके तटपर भगवान्‌ श्रीविष्णुका मन्दिर बनवाया।

कार्तिक मासमे उन्होने दीपदान किया। बिलावके

डरसे भागती हुई एक चुहियाने अकस्मात्‌ अपने

मुखके अग्रभागसे उस दीपककी वत्तीको बढ़ा

दिया। वत्तीके बढ़नेसे वह बुझता हुआ दीपक

प्रज्वलित हो उठा। मृत्युके पश्चात्‌ वही चुहिया

राजकुमारी हुई और राजा चारुधर्माकी सौ रानियोंमें

पटरानी हुई। इस प्रकार मेरे द्वारा विना सोचे-

समझे जो विष्णुमन्दिरके दीपककी वर्तिका बढ़ा

दी गयी, उसी पुण्यका मैं फल भोग रही हूँ।

इसीसे मुझे अपने पूर्वजन्मका स्मरण भी है।

इसलिये मैं सदा दीपदान किया करती हूँ।

एकादशीको दीपदान करनेवाला स्वर्गलोकमें

विमानपर आरूढ होकर प्रमुदित होता है । मन्दिरका

दीपक हरण करनेवाला गूँगा अथवा मूर्ख हो जाता

है । वह निश्चय ही 'अन्धतामिस्र' नामक नरकमें

गिरता है, जिसे पार करना दुष्कर है । वहाँ रुदन

करते हुए मनुरष्योसे यमदूत कहता है-""अरे।

अब यहाँ विलाप क्यो करते हो? यहां विलाप

करनेसे क्या लाभ है ? पहले तुमलोगोंने प्रमादवश

सहल जन्मोंके बाद प्राप्त होनेवाले मनुष्य-

जन्मकी उपेक्षा कौ थी। वहाँ तो अत्यन्त मोहयुक्त

चित्तसे तुमने भोगोंके पीछे दौड़ लगायी। पहले

तो विषयोंका आस्वादन करके खूब हँसे थे, अब

यहाँ क्यो रो रहे हो? तुमने पहले ही यह क्‍यों

नहीं सोचा कि किये हुए कुकर्मोका फल भोगना

पड़ता है। पहले जो परनारीका कुचमर्दन तुम्हें

प्रीतिकर प्रतीत होता था, वही अब तुम्हारे

दुःखका कारण हुआ है। मुहूर्तभरका विषयोंका

आस्वादन अनेक करोड़ वर्षोतक दुःख देनेवाला

होता है। तुमने परस्त्रीका अपहरण करके जो

कुकर्म किया, वह मैंने बतलाया। अब “हा!

मातः' कहकर विलाप क्‍यों करते हो ? भगवान्‌

श्रीहरिके नामका जिह्मासे उच्चारण करनेमें कौन-

सा बड़ा भार है? बत्ती और तेल अल्प मूल्यकी

वस्तुं हैं और अग्नि तो वैसे ही सदा सुलभ है।

इसपर भी तुमने दीपदान न करके विष्णु-

मन्दिरके दीपकका हरण किया, वही तुम्हारे लिये

दुःखदायी हो रहा है । विलाप करनेसे क्या लाभ?

अब तो जौ यातना मिल रही दै, उसे सहन

करो'"॥ ६--१८॥

अग्निदेव कहते है - ललिताकी सौते उसके

द्वारा कहे हुए इस उपाख्यानको सुनकर दीपदानके

प्रभावसे स्वर्गको प्राप्त हो गयीं । इसलिये दीपदान

सभी ब्रतोंसे विशेष फलरायक है ॥ १९॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणे "रीफ्दानकी महिमाका वर्णन” नामक

दो साँवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २००॥

← पिछला
अगला →