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कहा जाता है। कार्तिकके शुक्लपक्षकी एकादशीको | कहलाता है। शुक्लपक्षकी पञ्चमीसे आरम्भ कस्के

आरम्भ करके “पश्चरात्रव्रत' करे। प्रथम दिन | छः दिनतक क्रमशः यवकी लपसी, शाक, दधि

दुग्धपान करें, दूसरे दिन दधिका आहार करे, फिर | दुग्ध. धृत ओर जल-इन वस्तुओंका आहार

तीन दिन उपवास करे। यह अर्थप्रद ' भास्करकृच्छ्‌' | करे। इसे ' सांतपनकृच्छू' कहा गया है॥ १२--१६ ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'दिवस-सम्बन्धी ब्रतका वर्णन” नामक

एक सौ सत्तानवेवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १९७॥

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एक सौ अट्ठानबेवां अध्याय

भास-सम्बन्धी व्रते

अग्निदेव कहते हैं-- मुनिश्रेष्ठ! अब मैं

मास-ब्रतोंका वर्णन करूँगा, जो भोग और मोक्ष

प्रदान करनेवाले हैं। आषाढ़्से प्रारम्भ होनेवाले

चातुर्मास्यमें अभ्यङ्गं (मालिश और उबटन)-का

त्याग करे। इससे मनुष्य उत्तम बुद्धि प्राप्त करता

है। वैशाखे पुष्परेणुतकका परित्याग करके गोदान

करनेवाला राज्य प्राप्त करता है। एक मास

उपवास रखकर गोदान करनेवाला इस भीमत्रतके

प्रभावसे श्रीहरिस्वरूप हो जाता है। आषाढसे

प्रारम्भ होनेवाले चातुर्मास्थमें नियमपूर्वक प्रातःस्नान

करनेवाला विष्णुलोकको जाता है। माघ अथवा

चैत्र मासकी तृतीयाकों गुड़-धेनुका दान दे, इसे

*गुड़ब्रत' कहा गया है। इस महान्‌ ब्रतका अनुष्ठान

करनेवाला शिवस्वरूप हो जाता है। मार्गशीर्ष

आदि मासोमें 'नक्तव्रत' (रात्रिमें एक बार भोजन)

करनेवाला विष्णुलोकका अधिकारी होता है।

*एकभुक्त व्रत ' का पालन करनेवाला उसी प्रकार

पृथक्‌ रूपसे द्वादशीव्रतका भी पालन करे।

“फलब्रत' करनेवाला चातुर्मास्यमें फलका त्याग

करके उनका दान करे॥ १--५॥

श्रावणसे प्रारम्भ होनेवाले चातुर्मास्ये व्रतोकि

अनुष्टानसे ब्रतकर्ता सब कुछ प्राप्त कर लेता है।

चातुर्मास्य-व्र्तोका इस प्रकार विधान करें--

आषाढ़के शुक्लपक्षकी एकादशींको उपवास रखे।

प्रायः आषाढ़में प्राप्त होनेवाली कर्क-संक्रान्तिमें

श्रीहरिका पूजन करे और कहे--' भगवन्‌! मैंने

आपके सम्मुख यह त्रत ग्रहण किया है। केशव!

आपकी प्रसत्रतासे इसकी निर्विघ्न सिद्धि हो।

देवाधिदेव जनार्दन}! यदि इस त्रतके ग्रहणके

अनन्तर इसकी अपूर्णतामें ही मेरी मृत्यु हों जाय

तो आपके कृपा-प्रसादसे यह ब्रत सम्पूर्ण हो।

व्रत करनेवाला द्विज मांस आदि निषिद्ध वस्तुओं

और तेलका त्यागं करके श्रीहरिका यजन करे।

एक दिनके अन्तरसे उपवास रखकर त्रिरात्रत्रत

करनेवाला विष्णुलोकको प्राप्त होता है । 'चाद्धायण

व्रत" करनेवाला और “मौन त्रत

करनेवाला मोक्षका अधिकारी होता है । ' प्राजापत्य

त्रत" करनेवाला स्वर्गलोकको जाता है। सत्तू ओर

यवका भक्षण करके, दुग्ध आदिका आहार

करके, अथवा पञ्चगव्य एवं जल पीकर कृच्छुत्रतोंका

अनुष्ठान करनेवाला स्वर्गको प्राप्त होता है। शाक,

मूल और फलके आहारपूर्बक कृच्छत्रत करनेवाला

मनुष्य वैकुण्ठको जाता है। मांस ओर रसका

परित्याग करके जौका भोजन करनेवाला श्रीहरिके

सांनिध्यको प्राप्त करता है ॥ ६--१२६॥

अब मैं ' कौमुदव्रत ' का वर्णन करूँगा। आश्विनके

शुक्लपक्षकी एकादशीको उपवास रखे । द्वादशीको

श्रीविष्णुके अङ्गम चन्दनादिका अनुलेपन करके

कमल और उत्पल आदि पुष्योसे उनका पूजन

करे। तदनन्तर तिल-तैलसे परिपूर्ण दीपक और

घृतसिद्ध पक्कान्नका नैवेद्य समर्पित करे । श्रीविष्णुको

मालतीपुष्पोकी माला भी निवेदन करे । "ॐ नमो

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