सम्पूर्ण अभीष्ट कामनाओंको प्राप्त कर लेता है।
अब मैं ' बटसावित्री '-सम्बन्धी अमाबास्याके विषयमें
कहता हूँ, जो पुण्यमयी एवं भोग और मोक्षकौ
प्राप्ति करानेबाली है। व्रत करनेवाली नारी
(त्रयोदशीसे अमावास्यातक) “त्रिसत्रव्रत' करे
और ज्येष्ठकी अमावास्याको वटवृक्षके मूलभागमें
महासती सावित्रीका सप्तधान्यसे पूजन करे । जब
रात्रि कुछ शेष हो, उसी समय वरके कण्ठ-
सूत्र लपेटकर कुङ्कुमादिसे उसका पूजन करे ।
प्रभातकालमें वटके समीप नृत्य करे और गीत
गाये । “नम: सावित्रै सत्यवते । (सत्यवान्.
सावित्रीको नमस्कार है )-एेसा कहकर सत्यवान्
सावित्रीको नमस्कार करे और उनको समर्पित
किया हुआ नैवेद्य ब्राह्मणको दे । फिर अपने घर
आकर ब्राह्मणको भोजन कराके स्वयं भी भोजन
करे । ' सावित्रीदेवी प्रीयताम् ।' (सावित्रीदेवी प्रसन्न
हों)--ऐसा कहकर ब्रतका विसर्जन करे । इससे
नारी सौभाग्य आदिको प्राप्त करती है ॥ १--८॥
इस प्रकार आदि आग्नेव महापुराणे " तिथि व्रत्का वर्णन” नामक
एक सौ चौरानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ# १९४॥
एक सौ पंचानबेवाँ अध्याय
वार-सम्बन्धी व्रतोंका वर्णन
अग्निदेव कहते हैं-- वसिष्ठ ! अब मैं भोग
और मोक्ष प्रदान करनेवाले वार-सम्बन्धी ब्रतोंका
वर्णन करता हूँ। जब रविवारको हस्त अथवा
पुनर्वसु नक्षत्रका योग हो, तब पवित्र सर्वौषधिमिश्रित
जलंसे स्नान करना चाहिये। इस प्रकार रविवारको
श्राद्धं करनेवाला सात जन्मों रोगसे पीड़ित नहीं
होता। संक्रान्तिके दिन यदि रविवार हो, तो उसे
पवित्र * आदित्य-हृदय" माना गया है। उस दिन
अथवा हस्तनक्षत्रयुक्त रविवारको एक वर्षतक
नक्तव्रत करके मनुष्य सब कुछ पा लेता है।
चित्रानक्षत्रयुक्त सोमवारके सात व्रत करके मनुष्य
त्रत आरम्भ करे) इस प्रकार मङ्गलवारके सात
नक्तव्रत करके मनुष्य दुःख-बाधाओंसे छुटकारा
पाता है । बुध- सम्बन्धी व्रते विशाखा नक्षेत्रयुक्त
बुधवारको ग्रहण करे। उससे आरम्भ करके
बुधवारके सात नक्तत्रत करनेवाला बुधग्रहजनित
पीड़ासे मुक्त हो जाता है। अनुराधानक्षत्रयुक्त
गुरुवारसे आरम्भ करके सात नक्कत्रत करनेवाला
बृहस्पति -ग्रहकी पीड़ासे, ज्येष्ठानक्षत्रयुक्त शुक्रवारको
क्रत ग्रहण करके सात नक्तत्रत करनेवाला शुक्रग्रहकी
पीड़ासे और मूलनक्षत्रयुक्त शनिवारसे आरम्भ
करके सात नक्तत्रत करनेवाला शनिग्रहकी पीडासे
सुख प्राप्त करता दै । स्वातीनक्षत्रसे युक्त मङ्गलवारका | निवत्त हो जाता है ॥ १--५॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें “वार- सम्बन्ध व्रतोंका वनि " नामक
एक सौ प्रंचानबेवाँ अध्याय पूरा हआ ॥ १९५ ॥
न ^
एक सौ छियानबेवों अध्याय
नक्षत्र-सम्बन्धी व्रत
अग्निदेव कहते हैं-- वसिष्ठ! अब मैं नक्षत्र- | करते हैं। सर्वप्रथम नक्षत्र-पुरुष श्रीहरिका चैत्र
सम्बन्धी ब्रतोंका वर्णन करता हूँ। नक्षत्र-विशेषमें | मासमे पूजन करे । मूल नक्षत्रम श्रीहरिके चरण-
पूजन करनेपर श्रीहरि अभीष्ट मनोरधकी पूर्ति | कमलोंकों और रोहिणी नक्षत्रम उनकी जद्भाओंकी