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अपने हाथ या कण्ठमें बाँध ले। मन्त्र इस | करें। आपके स्वरूपका कहीं अन्त नहीं है।

प्रकार है-- आप हमें अपने उसी “अनन्त” स्वरूपमें

अनन्तसंसारमहासमुदरे मग्नान्‌ समभ्युद्धर बासुदेव॥ | मिला लें। आप अनन्तरूप परमे श्वरको बारंबार

अनन्तरूप विनियोजयस्व ह्यनन्तरूपाय नमो नमस्ते। | नमस्कार है ।'" इस प्रकार अनन्तव्रतकां अनुष्ठान

“हे बासुदेव ! संसाररूपी अपार पारावारे | करनेवाला मनुष्य परमानन्दका भागी होता

डूबे हुए हम-जैसे प्राणियोंका आप उद्धार | है ॥ ९-१०॥

इस प्रकार आदि आरेव महापुराणमें “अनेक ग्रकारके चूतुर्दशी-व्रतॉंका वर्णन” नामक

एक सौ वानवेवां अध्याय पूरा हुआ १९२॥

एक सौ तिरानबेवाँ अध्याय

शिवरात्रि-व्रत

अग्निदेव कहते हैं-- वसिष्ठ ! अब मैं भोग | आप नरक-समुद्रसे पार करानेवाली नौकाके

और मोक्ष प्रदान करनेवाले 'शिवरात्रि-त्रत' का | समान हैं; आपको नमस्कार है। आप प्रजा और

वर्णन करता हूँ; एकाग्रचित्तसे उसका श्रवण करो। | राज्यादि प्रदान करनेवाले, मङ्गलमय एवं शान्तस्वरूप

फाल्गुनके कृष्ण-पक्षकी चतुर्दशीको मनुष्य | हैं; आपको नमस्कार है। आप सौभाग्य, आरोग्य,

कामनासहित उपवास करे। व्रत करनेवाला रात्रिकों | विद्या, धन और स्वर्ग-मार्गकी प्राप्ति करानेवाले

जागरण करे और यह कहे--'मैं चतुर्दशीको | हैं। मुझे धर्म दीजिये, धन दीजिये और कामभोगादि

भोजनका परित्याग करके शिवरात्रिका व्रत करता | प्रदान कीजिये। मुझे गुण, कीर्ति और सुखसे

हूँ। मैं ब्रतयुक्त होकर रात्रि-जागरणके द्वारा | सम्पन्न कौजिये तथा स्वर्गं और मोक्ष प्रदान

शिवका पूजन करता हूँ। मैं भोग और मोक्ष प्रदान | कीजिये।” इस शिवरात्रि-ब्रतके प्रभावसे पापात्मा

करनेवाले शंकरका आवाहन करता हूँ। शिव! | सुन्दरसेन व्याधने भी पुण्य प्राप्त किया॥ १--६॥

इस ग्रकार आदि आण्तेय महापुराणमें 'शिवशात्रि-ब्रतका वर्णन” नामक

एक सौ तिरानबेवाँ अध्याय पूरा हअ ¢ १९३४

एक सौ चौरानबेवां अध्याय

अशोकपूर्णिमा आदि ब्रतोंका वर्णन

अग्निदेव कहते हैं-- अब मैं ' अशोकपूर्णिमा 'के | ' वृषोत्सर्गब्रत' के नामसे प्रसिद्ध है । आश्विनके

विषयमे कहता हूँ। फाल्गुनके शुक्लपक्षकी पूर्णिमाको | पितृपक्षकी अमावास्याको पितरोकि उद्देश्यसे

भगवान्‌ वराह और भूदेवीका पूजन करे। एक | जो कुछ दिया जाता है, वह अक्षय होता है।

वर्ष ऐसा करनेसे मनुष्य भोग और मोक्ष ~ | मनुष्य किसी वर्ष इस अमावास्याको उपवासपूर्वक

दोनोंकों प्राप्त कर लेता है। कार्तिककौ पूर्णिमाको | पितरोंका पूजन करके पापरहित होकर स्वर्गको

वृषोत्सर्ग करके रात्रित्रतका अनुष्ठान करे। इससे | प्राप्त कर लेता है। माघ मासकी अमावास्याको

मनुष्य शिवलोकको प्राप्त होता है । यह उत्तम व्रत | (सावित्रीसहित) ब्रह्माका पूजन करके मनुष्य

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