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जायफलका भोजन करे। व्रत करनेवाला मनुष्य

ज्येष्ठ मासमे ' प्रद्युम्न" का पूजन करे ओर लौंग

चबाकर रहे । आषाढ़में “उमापति की अर्चना

करके तिलमिश्रित जलका पान करे। श्रावणमें

शूलपाणि" का पूजन करके सुगन्धितं जलका

पान करे। भाद्रपदे अगुरुका प्राशन करे और

"सद्योजात ' का पूजन करे । आश्चिनमें ' त्रिदशाधिप

शंकर ' के पूजनपूर्वक स्वर्णजलका पान करे । ब्रती

पुरुष कार्तिकमें ' विश्वेश्वर ' कौ अर्चनाके अनन्तर

लवणका भक्षण करे। इस प्रकार वर्षकि समाप्त

होनेपर स्वर्णनिर्मित शिवलिङ्गको आमके पत्तों

और वस्त्रसे ढककर ब्राह्मणको सत्कारपूर्वक दान

दे। साथ ही गौ, शय्या, छत्र, कलश, पादुका तथा

रसपूर्ण पात्र भी दे॥ १-९॥

चैत्रके शुक्लपक्षकौ त्रयोदशीको सिन्दूर और

काजलसे अशोकवृक्षको अद्भत करके उसके

नीचे रति और प्रीति (कामकी पत्नियों )-से युक्त

कामदेवका स्मरण करे। इस प्रकार कामनायुक्त

साधक एक वर्षतक कामदेवका पूजन करे । यह

"कामनत्रयोदशी ब्रत" कहलाता दै ॥ १०-११॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें '्रयोदशीके व्रतका वर्णन” नामक

एक सौ उक्यानवेवां अध्याय पूरा हुआ# १९१॥

एक सौ बानबेवाँ अध्याय

चतुर्दशी -सम्बन्धी व्रत

अग्निदेव कहते हैं-- वसिष्ठ! अब मैं

चतुर्दशी तिथिको किये जानेवाले ब्रतका वर्णन

करूँगा। वह व्रत भोग और मोक्ष देनेवाला है।

कार्तिककी चतुर्दशीको निराहार रहकर भगवान्‌

शिवका पूजन करे और वरहीसे आरम्भ करके प्रत्येक

मासकी शिव- चतुर्दशीको व्रत और शिवपूजनका

क्रम चलाते हुए एक वर्षतक इस नियमको

निभावे। ऐसा करनेवाला पुरुष भोग, धन और

दीर्घायुसे सम्पन्न होता है ॥ १६ ॥

मार्गशीर्ष मासके शुक्लपक्षे अष्टमी, तृतीया,

द्वादशी अथवा चतुर्दशीको मौन धारण करके

फलाहारपर रहे और देवताका पूजन करे तथा

कुछ फलोंका सदाके लिये त्याग करके उन्हीका दान

करे । इस प्रकार फलचतुर्दशी ' का व्रत करनेवाला

पुरुष शुक्ल और कृष्ण-दोनों पक्षोंकी चतुर्दशी

एवं अष्टमीको उपवासपूर्वक भगवान्‌ शिवकी

पूजा करे। इस विधिसे दोनों पक्षोंकी चतुर्दशीका

त्रत करनेवाला मनुष्य स्वर्गलोकका भागी होता

नक्तव्रत (केवल रातमें भोजन) करनेसे साधक

इहलोकमें अभीष्ट भोग तथा ` परलोकर्मे शुभ

गति पाता है। कार्तिककौ कृष्णा चतुर्दशीको

स्नान करके ध्वजके आकारवाले बाँसके डंडोंपर

देवराज इन्द्रकी आराधना करनेसे मनुष्य सुखी

होता है ॥ २--६॥

तदनन्तर प्रत्येक मासकी शुक्ल चतुर्दशीको

श्रीहरिके कुशमय विग्रहका निर्माण करके उसे

जलसे भरे पात्रके ऊपर पधरावे और उसका

पूजन करे। उस दिन अगहनी धानके एक सेर

चावलके आटेका पूआ बनवा ले। उसर्मेसे आधा

ब्राह्मणको दे दे और आधा अपने उपयोगमें

लावे ॥ ७-८॥

नदियोकि तटपर इस त्रत और पूजनका

आयोजन करके वहीं श्रीहरिके * अनन्तत्रत' की

कथाका भी श्रवण या कीर्तन करना चाहिये । उस

समय चतुर्दश ग्रन्थियोंसे युक्त अनन्तसुत्रका निर्माण

करके अनन्तकी भावनासे ही उसका पूजन -करे।

है। कृष्णपक्षकी अष्टमी तथा चतुर्दशीको | फिर निम्नाङ्कित मन्त्रसे अभिमन्त्रित करके उसे

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