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हैं। भगवान्‌ वामन नित्य सभी द्रव्योंमें स्थित

नमस्कार है।'

इस प्रकार ब्राह्मणको दक्षिणासहित पूजन-

हैं। उन श्रीवामनावतार विष्णुको नमस्कार है, | द्रव्य देकर ब्राह्मणोंकों भोजन कराके स्वयं भोजन

करे ॥ १४-१५ ॥

इस प्रकार आदि आण्तेय महाएुराणमें 'ब्रवणद्वादरशी व्रतका वर्णत” रामक

एक सौ तवासीवाँ अध्याय परा हुआ॥ १८९॥

(व

एक सौ नब्बेवाँ अध्याय

अखण्डद्रादशी-व्रतका वर्णन

अग्निदेव कहते हैं-- अब मैं ' अखण्डद्वादशी '-

ब्रतके विषयमे कहता हूँ, जो समस्त ब्रतोंकी

सम्पूर्णताका सम्पादन करनेवाली है। मार्गशीर्षके

शुक्लपक्षकी ट्वादशीकों उपवास करके भगवान्‌

श्रीविष्णुका पूजन करे। व्रत करनेवाला मनुष्य

पञ्चगव्य-मिश्रित जलसे स्नान करे और उसीका

पारण करे। इस द्वादशीको ब्राह्मणको जौ और

धानसे भरा हुआ पात्र दान टे। भगवान्‌ श्रीविष्णुके

सम्मुख इस प्रकार प्रार्थना करे--' भगवन्‌! सात

जन्म मेरे दवाय जो त्रत खण्डित हुआ हो,

आपकी कृपासे वह मेरे लिये अखण्ड फलदायक

हो जाय। पुरुषोत्तम! जैसे आप इस अखण्ड

चराचर विश्वके रूपर्मे स्थित हैं, उसी प्रकार मेरे

किये हुए समस्त व्रत अखण्ड हो जायं ।' इस

प्रकार (मार्गशीर्षे आरम्भ करके फाल्गुनतक)

प्रत्येक मासमे करना चाहिये। इस व्रतको चार

महीनेतक करनेका विधान दै । चैत्रसे आषादपर्वन्त

यह त्रत करनेपर सततूसे भरा हुआ पात्र दान करे ।

श्रावणसे प्रारम्भ करके इस व्रतको कार्तिकमें समाप्त

करना चाहिये। उपर्युक्त विधिसे ' अखण्डद्रादशी '

का व्रत करनेपर सात जन्मोकि खण्डित ब्रतोंकों

यह सफल बना देता है । इसके करनेसे मनुष्य

दीर्घं आयु, आरोग्य, सौभाग्य, राज्य ओर विविध

भोग आदि प्राप्त करता है ॥ १--६॥

इस एकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'अखण्डद्वादशी-व्रतका वर्ण” नामक

एक त्तौ नब्बेदोँ अध्याय पूरा हुआ॥ १९० #

एक सौ इक्यानबेवां अध्याय

त्रयोदशी तिथिके व्रत

अग्निदेव कहते हैं-- अब मैं त्रयोदशौ

तिथिके व्रत कहता हूँ, जो सब कुछ देनेवाले हैं।

पहले मैं 'अनड्भन्नयोदशी 'के विषयमें जतलाता

हूँ। पूर्वकालमें अनङ्ग (कामदेव)-ने इसका व्रत

किया था। मार्गशीर्ष शुक्ला त्रयोदशीको

कामदेवस्वरूप 'हर' की पूजा करे। सात्रिमें

मधुका भोजन करें तथा तिल और अक्षत-

मिश्रित घृतका होम करे। पौषमें " योगेश्वर "का

पूजन एवं होम करके चन्दनका प्राशन करे।

माघमें 'महे श्वर' की अर्चना करके मौक्तिक (रास्ना

नामक पौधेके) जलका आहार करे। इससे मनुष्य

स्वर्गलोकको प्राप्त करता है। व्रत करनेवाला

फाल्गुनमें “वीरभद्र” का पूजन करके कङ्कोलका

प्राशन करे। चैत्रमें 'सुरूप' नामक शिवकी अर्चना

करके कर्पूरका आहार करनेवाला मनुष्य सौभाग्ययुक्त

होता है। बैशाखमें “महारूप” की पूजा करके

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