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क्ेदेड

[१ अग्निपुराण क

एक सौ छिहत्तरवाँ अध्याय

प्रतिपदा तिथिके व्रत

अग्निदेव कहते हैं-- अव मैं आपसे प्रतिपद्‌ | होकर स्वर्गमें उत्तम भोग भोगता है और पृथ्वीपर

आदि तिथियोंके त्र्तका वर्णन करूँगा, जो

सम्पूर्णं मनोरथोंकों देनेवाले हैं। कार्तिक, आश्विन

और चैत्र मासमें कृष्णपक्षकी प्रतिपद्‌ ब्रह्माजीकी

तिथि है। पूर्णिमाकों उपवास करके प्रतिपद्को

ब्रह्माजीका पूजन करे। पूजा “3० तत्सद्ब्रह्मणे

नमः।'-- इस मन्त्रसे अथवा गायत्री-मन्त्रसे करनी

चाहिये। यह त्रत एक वर्षतक करे। त्रह्माजीके

सुवर्णमय विग्रहका पूजन करे, जिसके दाहिने हाथोंमें

स्फटिकाक्षकी माला और खुबा हों तथा बायें

हाथोंमें सुक्‌ एवं कमण्डलु हों। साथ ही लंबी

दाढ़ी और सिरषर जटा भौ हो। यथाशक्ति दूध

चढ़ावे और मनमें यह उद्देश्य रखे कि 'ब्रह्माजी

मुझपर प्रसन्न हों।' यों करनेवाला मनुष्य निष्पाप

धनवान्‌ ब्राह्मणके रूपमें जन्म लेता है॥ १--४॥

अब “धन्यब्रत 'का वर्णन करता हूँ। इसका

अनुष्ठान करनेसे अधन्य भी धन्य हो जाता है।

पहले मार्गशीर्ष-मासकी प्रतिपद्कों उपवास करके

रातमें "अग्नये नपः।'-- इस मन्त्रसे होम और

अग्निकी पूजा करे। इसी प्रकार एक वर्षतक

प्रत्येक मासकी प्रतिपद्को अग्निकौ आराधना

करनेसे मनुष्य सब सुखोंका भागी होता है।

प्रत्येक प्रतिपदाको एकभुक्तं (दिनमें एक

समय भोजन करके) रहे। सालभरमें त्रतको

समासि होनेपर ब्राह्मण कपिला गौ दान करे । ऐसा

करनेवाला मनुष्य ' वैश्वानर '-पदको प्राप्त होता है ।

यह * शिखित्रत' कहलाता है ॥ ५--७॥

इस प्रकार आदि आग्नेय मंहापुराणमें 'ग्रातिपदू-ब्रतोंका वर्णन नामक

एक सौ छिहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ १७५ ॥

[2

एक सौ सतहत्तरवां अध्याय

द्वितीया तिथिके ब्रत

अग्निदेव कहते हैं-- अब मैं द्वितीवाके

ब्रतोंका वर्णन करूँगा, जो भोग और मोक्ष आदि

देनेवाले हैं। प्रत्येक मासकी द्वितीयाको फूल

खाकर रहे और दोनों अश्विनीकुमार नामक

देवताओंकी पूजा करे। एक वर्षतक इस ब्रतके

अनुष्ठानसे सुन्दर स्वरूप एवं सौभाग्यकी प्राप्ति

होती है और अन्‍्तमें ब्रती पुरुष स्वर्गलोकका

भागी होता है कार्तिकमें शुक्लपक्षकी द्वितीयाको

यमकी पूजा करे। फिर एक वर्षतक प्रत्येक

शुक्ल-द्वितीयाको उपवासपूर्वंक व्रत रखे। ऐसा

करनेवाला पुरुष स्वर्गमिं जाता है, नरकमें नहीं

पडता ॥ १-२२ ॥

अब * अशून्य-शयन ' नामक त्रत बतलाता हूँ,

जो स्त्रियोको अवैधव्य (सदा सुहाग) और

पुरुषोंकों पली-सुख आदि देनेवाला है । श्रावण

मासके कृष्णपक्षको द्वितीयाको इस त्रतका अनुष्ठान

करना चाहिये । (इस व्रतमें भगवान्‌से इस प्रकार

प्रार्थना कौ जाती है--) “ वक्षःस्थलमें श्रौवत्सचिह

धारण करनेवाले श्रीकान्त! आप लक्ष्मीजीके धाम

ओर स्वामी हैं; अविनाशी एवं सनातन परमेश्वर

है । आपकी कृपासे धर्म, अर्थं और काम प्रदान

करनेवाला मेरा गार्हस्थ्य-आश्रम नष्ट न हो। मेरे

चरके अग्निहोत्रकी आग कभी न बुझे, गृहदेवता

कभी अदृश्य न हों। मेरे पित्तर नाशसे बचे रहें

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