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विमला, अमोघा, विद्युता तथा सर्वतोमुखी-इन

नौ शक्तियोंकी पूजा होनी चाहिये । तत्पश्चात्‌ " ॐ

ब्रहमविष्णुशिवात्मकाय सौराय पीठाय नमः ।' इस

मन्त्रसे सूर्यके आसनका स्पर्श और पूजन करे ।

फिर " ॐ खं खखोल्काय नमः ।' इस मन्तरसे

सूर्यदेवकी मूर्तिकी उद्धावना करके उसका अर्चन

करे। तत्पश्चात्‌ ' ॐ हां हीं सः सूर्याय नम: ।' इस

मन्त्रसे सूर्यदेवकी पूजा करे। इसके बाद हृदयादिका

पूजन करे--' ॐ आं नम: ।' इससे हदयकी ' ॐ

अर्काय नमः।' इससे सिरकी पूजा करे। इसी

प्रकार अग्नि, ईश और वायुमें अधिष्ठित सूर्यदेवका

भी पूजन करे । फिर ' ॐ भूर्भुवः स्वः ज्वालिन्यै

शिखायै नमः।' इससे शिखाकी, ' ॐ हं कवचाय

नमः।' इससे कवचक, ' ॐ भां नेत्राभ्यां नमः।'

इससे नेत्रकी ओर * ॐ रम्‌ अकल्य नमः।'

इससे अस्त्रकी पूजा करे। इसके बाद सूर्वकी

शक्ति रानी संज्ञाकी तथा उनसे प्रकट हुई छायादेवीकी

पूजा करे। फिर चन्द्रमा, मङ्गल, बुध, बृहस्पति,

शुक्र, शनि, राहु और केतु - क्रमशः इन ग्रहोंका

और सूर्यके प्रचण्ड तेजका पूजन करें। अब

संक्षेपसे पूजन बतलाते हैं--देवताके आसन, मूर्ति,

मूल, हृदय आदि अङ्गं ओर परिचारक इनकी ही

पूजा होती है ॥ १३--१९॥

भगवान्‌ विष्णुके आसनका पूजन "ॐ श्रीं

श्रीं श्रीधरो हरिः हीं ।' इस मन्त्रसे करना चाहिये ।

इसी मन्त्रसे भगवान्‌ विष्णुकी मूर्तिका भी पूजन

करे । यह सर्वमूर्तिमन््र है । इसीको त्रैलोक्यमोहन

मन्त्र भी कहते हैँ । भगवानके पूजनमें ' ॐ क्लीं

इषीकेशाय नमः।' ' ॐ हुं विष्णवे नमः।'-- इन

मन्त्रोंका उपयोग करे। सम्पूर्ण दीर्घ स्वरोंके द्वारा

हदय आदिकी पूजा करे; जैसे--' ॐ आं हृदयाय

नमः।' इससे इृदयकी, “39 इई शिरसे नमः।'

इससे सिरकी, "ॐ ऊ शिखायै नमः।' इससे

शिखाकी, ' ॐ ए कवचाय नमः।' इससे कवचक,

"ॐ एं नेत्राभ्यां नमः।' इससे नेत्रोंकी और ॐ

ओँ अचत्राय नमः।' इससे अस्त्रक पूजा करे ।

पाँचवीं अर्थात्‌ परिचारकोंकी पूजा संग्राम आदिर

विजय आदि देनेवाली है। परिचारकोंमें चक्र,

गदा, शङ्ख, मुसल, खड्ग, शार्ड्रधनुष, पाश,

अंकुश, श्रीवत्स, कौस्तुभ, वनमाला, 'श्रीं' इस

बीजसे युक्त श्री- महालक्ष्मी, गरुड, गुरुदेव और

इन्द्रादि देवताओंका पूजन किया जाता है । (इनके

पूजने प्रणवसहित नामके आदि अक्षरम अनुस्वार

लगाकर चतुर्थी विभक्तियुक्त नामके अन्तर्मे “नमः '

जोड़ना चाहिये। जैसे "ॐ चं चक्राय नमः।'

* 3» गं गदायै नमः ।' इत्यादि) सरस्वतीके आसनकी

पूजामें ' ॐ ऐं देव्यै सरस्वत्यै नम: ।' इस मन्त्रका

उपयोग करे और उनकी मूर्तिके पूजनमें ' ॐ हीं

देव्यै सरस्वत्यै नमः ।' इस मन्त्रसे काम ले। हृदय

आदिके लिये पूर्ववत्‌ मन्त्र हैं। सरस्वतीके

परिचारके लक्ष्मी, मेधा, कला, तुष्टि, पुष्टि,

गौरी, प्रभा, मति, दुर्गा, गण, गुरु और क्षेत्रपालकी

पूजा करे ॥ २०--२४॥

तथा * ॐ गं गणपतये नमः: ।'-- इस मन्त्रसे

गणेशकी, "ॐ हीं गौर्यै नमः।' इस मन्त्रसे

गौरीकी, "ॐ श्रीं श्रियै नमः।' इससे श्रीकी,

"ॐ हं त्वरितायै नमः ।' इस मन्त्रसे त्वरिताकी,

"ॐ ऐं क्लीं सौं त्रिपुरायै नमः।' इस मन्त्रो

त्रिपुराकी पूजा करे । इस प्रकार त्रिपुरा" शब्द भी

चतुर्थी विभक्त्यन्त हो और अन्तमें ' नमः ' शब्दका

प्रयोग हो। जिन देवताओकि लिये कोई विशेष

मन्त्र नहीं बतलाया गया है, उनके नामके आदिमे

प्रणव लगावे। नामके आदि अक्षरे अनुस्वार

लगाकर उसे बीजके रूपमे रखे तथा पूर्ववत्‌

नामके अन्ते चतुर्थी विभक्ति ओर ' नमः" शब्द

जोड़ ले। पूजन और जपमें प्रायः सभी मन्त्र

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