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बिना जाने पी लेता है, वह " सांतपनकृच्छ' करे

एवं शुद्र ऐसा करनेपर एक दिन उपवास करे। जो

द्विज चाण्डालका स्पर्श करके जल पी लेता है,

उसे 'त्रिरात्र-त्रत' करना चाहिये और ऐसा

करनेवाले शूद्रकों एक दिनका उपवास करना

चाहिये॥ २०--२५३ ॥

ब्राह्मण यदि उच्छिष्ट, कुत्ता अथवा शूद्रका

स्पर्श कर दे, तो एक रात उपवास करके

पञ्चगव्य पीनेसे शुद्ध होता है। वैश्य अथवा

क्षत्रियका स्पर्शं होनेपर स्नान और “नक्तव्रत'

करे। मार्ममें चलता हुआ ब्राह्मण यदि बन अथवा

जलरहित प्रदेशमें पक्कान्न हाथमें लिये मल-मूत्रका

त्याग कर देता है, तो उस द्रव्यको अलग न

रखकर अपने अङ्के रखे हुए ही आचमन

आदिसे पवित्र होकर अन्नका प्रोक्षण करके उसे

सूर्य एवं अग्निको प्रदर्शित करे॥ २६--२९॥

जो प्रवासी मनुष्य म्लेच्छों, चोरके निवासभूत

देश अथवा वनमें भोजन कर लेते है, अब मैं

वर्णक्रमसे उनकी भक्ष्याभक्ष्यविषयक शुद्धिका

उपाय बतलाता हूँ । ऐसा करनेवाले ब्राह्मणको

अपने गाँवमें आकर 'पूर्णकृच्छर', क्षत्रियको तीन

चरण और वैश्यको आधा व्रत करके पुनः अपना

संस्कार कराना चाहिये। एक चौथाई व्रत करके

दान देनेसे शूद्रकी भी शुद्धि होती टै ॥ ३०--३२॥

यदि किसी स्त्रीका समान वर्णवाली रजस्वला

स्त्रीसे स्पर्श ष्टो जाय तो वह उसी दिन स्नान

करके शुद्ध हो जाती है, इसमें कोई संशय नहीं

है। अपनेसे निकृष्टं जातिवाली रजस्वलाका स्पर्श

करके रजस्वला स्त्रीको तवबतक भोजन नहीं

करना चाहिये, जबतक कि वह शुद्ध नहीं हो

जाती । उसको शुद्धि चौथे दिनके शुद्ध स्नानसे हौ

होती है । यदि कोई द्विज मूत्रत्याग करके मार्ममें

चलता हुआ भूलकर जल पी ले, तो वह एक

दिन-रात उपवास रखकर पञ्चगव्यके पानसे शुद्ध

होता है। जो मूत्र त्याग करनेके पश्चात्‌ आचमनादि

शौच न करके मोहवश भोजन कर लेता है,

वह तीन दिनतक ववपान करनेसे शुद्ध होता

है ॥ ३३--३६॥

जो ब्राह्मण संन्यास आदिकी दीक्षा लेकर

गृहस्थाश्रमका परित्याग कर चुके हों और पुनः

संन्यासाश्रमसे गृहस्थाश्रपमें लौटना चाहते हों,

अब मैं उनकी शुद्धिके विषयमे कहता हूँ। उनसे

तीन "प्राजापत्य" अथवा ' चा्द्रायण- व्रते" कराने

चाहिये । फिर उनके जातकर्म आदि संस्कार पुनः

कराने चाहिये ॥ ३७-३८॥

जिसके मुखसे जूते या किसी अपवित्र

वस्तुका स्पर्श हो जाय, उसकी मिट्टी और

गोबरके लेपन तथा पञ्चगव्यके पानसे शुद्धि होती

है। नीलकी खेती, विक्रय और नीले वस्त

आदिका धारण--ये ब्राह्मणका पतन करनेवाले

हैं। इन दोषोंसे युक्त ब्राह्मणकी तीन ' प्राजापत्यत्रत '

करनेसे शुद्धि होती है। यदि रजस्वला स्त्रीको

अन्त्यज या चाण्डाल छू जाय तो “त्रिरात्र-व्रत'

करनेसे चौथे दिन उसकी शुद्धि होती है।

चाण्डाल, श्वपाक, मजा, सूतिका स्त्री, शव और

शवका स्पर्श करनेवाले मनुष्यको छूनेपर

तत्काल स्नान करनेसे शुद्धि होती है । मनुष्यकी

अस्थिका स्पर्श होनेपर तैल लगाकर स्नान

करनेसे ब्राह्मण विशुद्ध हो जाता है। गलीके

कौचडके छटि लग जानेपर नाभिके नीचेका भाग

मिट्टी और जलसे धोकर स्नान करनेसे शुद्धि

होती है। वमन अथवा विरेचनके वाद स्नान

करके घृतका प्राशन करनेसे शुद्धि होती है।

स्नानके बाद क्षौरकर्म करनेवाला और ग्रहणके

समय भोजन करनेवाला “प्राजापत्यब्नत' करनेसे

शुद्ध होता है। पह्किदूषक मनुष्योंक साथ पङ्क्ते

बैठकर भोजन करनेवाला, कुत्ते अथवा

कीटसे दंशित मनुष्य पञ्चगव्यके पानसे शुद्धि

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