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अतिरिक्त काकी, श्येनी, भासी, गृध्रिका और

शुचिग्रीवा आदि भी कश्यपजीकी भार्याएँ थीं,

उनसे काक आदि पक्षी उत्पन्न हुए। ताप्राके पुत्र

घोड़े और ऊँट थे। विनताके अरुण और गरुड

नामक दो पुत्र हुए। सुरसासे हजारों साँप उत्पन्न

हुए और क्रूके गर्भसे भी शेष, वासुकि और

तक्षक आदि सहसत नाग हए । क्रोधवशाके गर्भसे

दंशनशील दाँतवाले सर्प प्रकट हुए। धरासे जल-

पक्षी उत्पन्न हुए। सुरभिसे गाय-भैंस आदि

पशुओंकी उत्पत्ति हुई। इराके गर्भसे तृण आदि

उत्पन्न हुए। खसासे यक्ष-राक्षस और

गर्भसे अप्सराएँ प्रकट हुईं। इसी प्रकार अरिष्टाके

गर्भसे गन्धर्वं उत्पन्न हुएं। इस तरह कश्यपजीसे

स्थावर-जड्म जगत्‌की उत्पत्ति हुई॥ १२--१८॥

इन सबके असंख्य पुत्र हुए। देवताओंने

दैत्योंको युद्धमें जीत लिया। अपने पुत्रोंके मारे

जानेपर दितिने कश्यपजीको सेवासे संतुष्ट किया।

वह इन्द्रका संहार करनेवाले पुत्रको पाना चाहती

थी; उसने कश्यपजीसे अपना वह अभिमत बर

प्राप्त कर लिया। जब वह गर्भवती और ब्रतपालनमें

तत्पर थी, उस समय एक दिन भोजनके बाद

बिना पैर धोये ही सो गयी। तब इन्द्रने यह छिद्र

(त्रुटि या दोष) ढूँढ़कर उसके गर्भमें प्रविष्ट हो

उस गर्भके टुकड़ें-टुकड़े कर दिये; (किंतु ब्रतके

प्रभावसे उनकी मृत्यु नहीं हुई।) वे सभी अत्यन्त

नामक देवता हुए। मुने! यह सारा वृत्तान्त मैने

सुना दिया। श्रीहरि-स्वरूप ब्रह्माजीने पृथुको

नरलोकके राजपदपर अभिषिक्त करके क्रमशः

दूसरोंकों भी राज्य दिये--उन्हें विभिन्न समूहोंका

राजा बनाया। अन्य सबके अधिपति (तथा

परिगणित अधिपतियोंके भी अधिपति) साक्षात्‌

श्रीहरि ही हैं॥१९--२२॥

ब्राह्मणों और ओषधियोंके राजा चन्द्रमा हुए।

जलके स्वामी वरुण हुए। राजाओंके राजा कुबेर

हुए। द्वादश सूर्यों (आदित्यों )-के अधी श्र भगवान्‌

विष्णु थे। वसुओंके राजा पावक और मरुद्रणोंके

स्वामी इन्द्र हुए। प्रजापतियोंके स्वामी दक्ष और

दानवोके अधिपति प्रहाद हुए। पितरोंके

यमराज और भूत आदिके स्वामी सर्वसमर्थ

भगवान्‌ शिव हुए तथा शैलों (पर्वतों)-के राजा

हिमवान्‌ हुए और नदियोंका स्वामी सागर हुआ।

गन्धर्वोंके चित्ररथ, नागोंके वासुकि, सर्पोंके तक्षक

और पक्षियोंक गरुड राजा हुए। श्रेष्ठ

हाथियोंका स्वामी ऐरावत हुआ और गौओंका

अधिपति सँड्‌ । वनचर जीर्वोका स्वामी शेर हुआ

ओर वनस्पतिर्योका प्लक्ष (पकड) । घोड़ोंका

स्वामी उच्चैःश्रवा हुआ। सुधन्वा पूर्व दिशाका

रक्षक हुआ। दक्षिण दिशामें शङ्घुपद और

पश्चिममें केतुमान्‌ रक्षक नियुक्त हए । इसी प्रकार

उत्तर दिशामें हिरण्यरोमक राजा हुआ। यह

तेजस्वी और इन्द्रके सहायक उनचास मस्त्‌ | प्रतिसर्मका वर्णन किया गया ॥ २३-२९॥

इस प्रकार आदि आग्तेय महापुराणे “प्रतिसर्यीविषयक कश्यप्रवंश्का वर्णन " नामक

उम्नीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १९॥

न द 2...

बीसवाँ अध्याय

सर्गका वर्णन

अग्निदेव कहते हैं--मुने ! (प्रकृतिसे) पहले | इसे ऐन्द्रियकसर्ग कहते हैं। इस प्रकार यह

महत्तत्वकी सृष्टि हुई, इसे ब्राह्मसर्ग समझना | बुद्धिपूर्वक प्रकट हुआ प्राकृतसर्गं तीन प्रकारका

चाहिये। दूसरी तन्मात्राओंकी सृष्टि हुई, इसे | है । चौथे प्रकारक सृष्टिको 'मुख्यसर्ग' कहते है ।

भूतसर्ग कहा गया है । तीसरी वैकारिक सृष्टि है, | मुख्य' नाम है- स्थावरो (वृक्ष -पर्वत आदि) -

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