बाद और चूडाकरणके पहले कन्याकौ मृत्यु हो | पुरुषोंको एक दिनका अशौच लगता है और
तो माता-पिताकों तीन दिनका अशौच लगता है
और सपिण्ड पुरुषोंकी तत्काल ही शुद्धि होती
है। चूडाकरणके बाद वाग्दानके पहलेतक उसकी
मृत्यु होनेपर बन्धु-बान्धवोंको एक दिनका अशौच
लगता है। वाग्दानके बाद विवाहके पहलेतक
उन्हें तीन दिनका अशौच प्राप्त होता है। तत्पश्चात्
उस कन्यके भतीजोंको दो दिन एक रातका
अशौच लगता है; किंतु अन्य सपिण्ड पुरुषोंकी
तत्काल शुद्धि हो जाती है। ब्राह्मण सजातीय
पुरुषोकि यहाँ जन्म-मरणमें सम्मिलित हो तो दस
दिनमें शुद्ध होता है और क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्रके
यहाँ जन्म-मृत्युमें सम्मिलित होनेपर क्रमश: छः,
तीन तथा एक दिने शुद्ध होता है॥ १९--२३ ॥
यह जो अशौच-सम्बन्धी नियम निश्चित
किया गया है, वह सपिण्ड पुरुषोंसे ही सम्बन्ध
रखता है, ऐसा जानना चाहिये। अब जो औरस
नहीं हैं, ऐसे पुत्र आदिके विषयमें बताऊँगा।
औरस-मभिन्न क्षेत्रज, दत्तक आदि पुत्रके मरनेपर
तथा जिसने अपनेको छोड़कर दूसरे पुरुषसे
सम्बन्ध जोड़ लिया हो अथवा जो दूसरे पतिको
छोड़कर आयी हो और अपनी भार्या बनकर
रहती रही हो, ऐसी स्त्रीके मरनेपर तीन रातमें
अशौचको निवृत्ति होती है। स्वधर्मका त्याग
करनेके कारण जिनका जन्म व्यर्थ हो गया हो,
जो वर्णसंकर संतान हो अर्थात् नीचवर्णके पुरुष
और उच्चवर्णकी स्त्रीसे जिसका जन्म हुआ हो,
जो संन्यासी बनकर इधर-उधर घूमते-फिरते रहे
हों और जो अशास्त्रीय विधिसे विष-बन्धन
आदिके द्वारा प्राणत्याग कर चुके हों, ऐसे
लोगोंके निमित्त बान्धवोंको जलाझलि-दान नहीं
करना चाहिये; उनके लिये उदक-क्रिया निवृत्त
हो जाती है। एक ही माताद्वारा दो पिताओंसे
उत्पन्न जो दो भाई हों, उनके जन्मे सपिण्ड
मरनेपर दो दिनका। यहाँतक सपिण्डोंका अशौच
बताया गया। अब “समानोदक'का जता रहा
हूँ॥ २४--२७॥
दाँत निकलनेसे पहले बालककी मृत्यु हो
जाय, कोई सपिण्ड पुरुष देशान्तरमें रहकर मरा
हो और उसका समाचार सुना जाय तथा किसी
असपिण्ड पुरुषकी मृत्यु हो जाय--तो इन सब
अबस्थाओंमें (नियत अशौचका काल-बिताकर )
वस्त्रसहित जलमें डुबकी लगानेपर तत्काल ही
शुद्धि हो जाती है। मृत्यु तथा जन्मके अवसरपर
सपिण्ड पुरुष दस दिनॉमें शुद्ध होते हैं, एक
कुलके असपिण्ड पुरुष तौन रातमें शुद्ध होते हैं
और एक गोत्रवाले पुरुष स्नान करनेमात्रसे शुद्ध
हो जाते हैं। सातवीं पीढ़ीमें सपिण्डभावकी
निवृत्ति हो जाती है और चौदहवों पीढ़ीतक
समानोदक सम्बन्ध भी समास्त हो जाता है।
किसीके मतमें जन्म और नामका स्मरण न
रहनेपर अर्थात् हमारे कुलमें अमुक पुरुष हुए थे,
इस प्रकार जन्म और नाम दोनोंका ज्ञान न
रहनेपर--समानोदकभाव निवृत्त हो जाता है।
इसके बाद केवल गोत्रका सम्बन्ध रह जाता है।
जो दशाह बीतनेके पहले परदेशमें रहनेवाले
किसी जाति-बन्धुकी मृत्युका समाचार सुन लेता
है, उसे दशाहमें जितने दिन शेष रहते हैं, उतने
ही दिनका अशौच लगता है। दशाह बीत जानेपर
उक्त समाचार सुने तो तीन रातका अशौच प्राप्त
होता है॥ २८--३२॥
वर्ष बीत जानेपर उक्त समाचार ज्ञात हो तो
जलका स्पर्श करके ही मनुष्य शुद्ध हो जाता है।
मामा, शिष्य, ऋत्विक् तथा बान्धवजनोंके मरनेपर
एक दिन, एक रात और एक दिनका अशौच
लगता है। मित्र, दामाद, पुत्रीके पुत्र, भानजे, साले
और सालेके पुत्रके मरनेपर स्नानमात्र करनेका