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बेरे

दागको छुड़ानेके लिये पीली सरसकि चूर्ण या | उसपर॑ जलका छरा देने मात्रसे बतायी गयी है ।

उबटनसे मिश्रित जलके द्वार धोना चाहिये। मृगचर्म | | फूलों और फलोँकी भी उनपर जल छिड़कने

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या मृगके रोमोंसे बने हुए. आसन आदिकी शुद्धि | मात्रसे पूर्णतः शुद्धि हो जाती है ॥ ९५१६ ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें (द्रव्य-जुद्धिका कर्णीन ^ नमक

एक स्रौ छष्यनवां अध्याय पद इजा ॥ १५६॥

एक सौ सत्तावनवाँ अध्याय

मरणाशौच तथा पिण्डदान एवं दाह -संस्कारकालिक कर्तव्यका कथन

पुष्कर कहते हैँ -- अब मैं “प्रेतशुद्धि' तथा | होनेपर बारह दिन बाद शुद्धि होती है तथा छः

" सूतिकाशुद्धि ' का वर्णन करूँगा। सपिण्डे अर्थात्‌ | वर्ष व्यतीत होनेके पश्चात्‌ उसके मरणका अशौच

मूल पुरुषकी सातवीं पीढ़ीतककी संतानोंमें मरणाशौच

दस दिनतक रहता है । जननाशौच भी इतने ही

दिनतक रहता है। परशुरामजी ! यह ब्राह्मणोके

लिये अशौचकी बात बतलायी गयी। क्षत्रिय

बारह दिनोंमें, वैश्य पंद्रह दिनोंमें तथा शूद्र एक

मासमें शुद्ध होता है। यहाँ उस शुद्रके लिये कहा

गया है, जो अनुलोमज हो अर्थात्‌ जिसका जन्म

उच्च जातीय अथवा सजातीय पितासे हुआ हो।

स्वामौको अपने घरमें जितने दिनका अशौच

लगता है, सेवकको भी उतने ही दिनोंका लगता

है । क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्रोंका भी जननाशौच दस

दिनका ही होता है ॥ १--३॥

परशुरामजी ! ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शुद्र

इसी क्रमसे शुद्ध होते हैं। (किसी-किसीके

मतमें) वैश्य तथा शूद्रके जननाशौचकी निवृत्ति

पंद्रह दिनोंमें होती है । यदि बालक दाँत निकलनेके

पहले ही मर जाय तो उसके जननाशौचकी

सद्यःशुद्धि मानी गयी है। दाँत निकलनेके बाद

चूडाकरणसे पहलेतककी मृत्युमें एक रातका

अशौच होता है, यज्ञोपवीतके पहलेतक तीन

रातका ` तथा उसके बाद दस रातका अशौच

जताया गया है। तीन वर्षसे कमका शुद्र-बालक

यदि मृत्युको प्राप्त हो तो पाँच दिनोंके बाद उसके

अशौचकी निवृत्ति होती है। तीन वर्षके बाद मृत्यु

एक मासके बाद निवृत्त होता है। कन्याओंमें

जिनका मुण्डन नहीं हुआ है, उनके मरणाशौचकी

शुद्धि एक रातमें होनेवाली मानी गयी है और

जिनका मुण्डन हो चुका है, उनकौ मृत्यु होनेपर

उनके बन्धु-बान्धव तीन दिन बाद शुद्ध

होते हैं ॥४--८॥

जिन कन्याओंका विवाह हो चुका है, उनकी

मृत्युका अशौच पितृकुलको नहीं प्राप्त होता। जो

स्त्रियाँ पिताके घरमें संतानको जन्म देती हैं, उनके

उस जननाशौचकी शुद्धि एक रातमें होती है।

किंतु स्वयं सूतिका दस राते ही शुद्ध होती है,

इसके पहले नहीं। यदि विवाहित कन्या पिताके

घरमें मृत्युको प्राप्त हों जाय तो उसके बन्धु-

बान्धव निश्चय ही तीन रातमें शुद्ध हो जाते हैं।

समान अशौचको पहले निवृत्त करना चाहिये

और असमान अशौचको बादमें। ऐसा ही धर्मराजका

वचन है। परदेशमें रहनेवाला पुरुष यदि अपने

कुलमें किसीके जन्म या मरण होनेका समाचार

सुने तो दस रातमें जितना समय शेष हो, उतने

ही समयतक उसे अशौच लगता है। यदि दस

दिन व्यतीत होनेपर उसे उक्त समाचारका ज्ञान

हो, तो वह तीन राततक अशौचयुक्त रहता है

तथा यदि एक वर्ष व्यतीत होनेके बाद उपर्युक्त

बातोंकी जानकारी हो तो केवल स्नानमात्रसे

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