महाभैरवों', ब्रह्माणी आदि आठ' शक्तियों तथा | भगवति चज्रशद्खुले हन हन, ॐ भक्ष भक्ष, ॐ
सूर्य आदि आठ ग्रहोंको स्थापित करे । पूर्व आदि | खाद, ॐ अरे रक्तं पिब कपालेन रक्ताक्षि रक्तपटे
प्रत्येक दिशामें ब्रह्माणी आदि आठ शक्तियोकि | भस्माड़ि भस्मलिप्तशरीरे वज्रायुधे वजरप्राकारनिचिते
आठ अष्टकोकी भी स्थापना करे। दक्षिण आदि | पूर्वां दिशं बन्ध बन्ध, ॐ दक्षिणां दिशं बन्ध
दिशाओं वातयोगिनीका उल्लेख करे। वायु जिस
दिशामें बहती है, उसी दिशामे इन सबके साथ
रहकर राहु शत्रुओंका संहार करता है ॥ १४-- १७१ ॥
अब मैं अड्ोंको सुदृढ करनेका उपाय बता
रहा हूँ। पुष्यनक्षत्रमे उखाडी हुई तथा निम्नाड्वित
अपराजिता-मन्त्रका जप करके कण्ठ अथवा भुजा
आदिमे धारण की हुई शरपुंखिका ('सरफोंका'
नामक ओषधि) विपक्षीके बाणोंका लक्ष्य बननेसे
बचाती है । इसी प्रकार पुष्यमें उखाड़ी अपराजिता
एवं "पाठा" नामक ओषधिको भी यदि
मन्त्रपादपूर्वक कण्ठ और भुजाओंमें धारण किया
जाय तो उन दोनोकि प्रभावसे मनुष्य तलवारके
वारको बचा सकता है ॥ १८-१९॥
(अपराजिता-मन्त्र इस प्रकार है--) ॐ नमो
बन्ध, ॐ पश्चिमां दिशं बन्ध बन्ध, ॐ उत्तरां
दिशं बन्ध बन्ध, नागान् बन्ध बन्ध, नागपलीर्वन्धि
बन्ध, ॐ असुरान् बन्ध चन्ध, ॐ
यक्षराक्षसपिशाचान् बन्ध बन्ध, ॐ
परेतभूतगन्धर्वादयो ये केचिदुपद्रवास्तेभ्यो रश्च रक्ष,
ॐ ऊर्ध्व रश्च रक्ष, ॐ अथो रक्ष रक्ष, ॐ क्षुरिकं
बन्ध बन्ध, ॐ ज्वल महाबले । घटि घटि, ॐ
मोटि मोटि, सटावलिवच्राग्नि वच्रप्राकारे हं फर्,
हूं श्रीं फट् हीं हः फूँ फे फः सर्वग्रहेभ्यः
सर्वव्याधिभ्यः सर्वदुष्टोपद्रवेभ्यो हीं अशेषेभ्यो
रक्ष रक्ष॥ २०॥ ॥
ग्रहपीड़ा, ज्वर आदिकी पीड़ा तथा भूतबाधा
आदिके निवारण--इन सभी कर्मोमें इस मन््रका
उपयोग करना चाहिये॥ २१॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'मन््रौपधि आदिका वर्णन” नामक
` एक सौ बयालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १४२॥
मो
एक सौ तैंतालीसवाँ अध्याय
कुक्जिका-सम्बन्धी न्यास एवं पूजनकी विधि
महादेवजी कहते ह -- स्कन्द! अब मैं
कुल्जिकाकी क्रमिक पूजाका वर्णन करूँगा, जो
काली'-- यह हृदय मन्त्र है। “दुष्ट
चाण्डालिका '-- यह शिरोमन्त्र है। ' हीं स्फेह स
समस्त मनोरथोको सिद्ध करनेवाली है । ' कुब्जिका" | | क छ इ ओंकारो भैरवः ।'-- यह शिखा-
वह शक्ति है, जिसकी सहायतासे राज्यपर स्थित
हुए देवताओंने अस्त्-शस्त्रादिसे असुरोंपर विजय
पायी है॥१॥
मायाबीज "हीं" तथा इृदयादि छः मन्त्रोंका
क्रमशः गुह्याद्ग एवं हाथमे न्यास करे। "काली
सम्बन्धी मन्त्र है । * भेलखी दूती '- यह कवच-
सम्बन्धी मन्त्र है । “रक्तचण्डिका -- यह नेत्र-
सम्बन्धी मन्त्र है तथा “गुद्दाकुब्जिका '-- यह
अस्त्र-सम्बन्धी मन्त्र है। अङ्गो और हाथोंमें
इनका न्यास करके मण्डलमें यथास्थानं इनका
१. ' मन्व-महोदधि'१। ५४ में आठ भैरवोंके नाम इस प्रकार आये हैं--अपसिताम्भभैरव, रुकुपैरव, चण्डपैरव (या कालभैरव )
क्रोधभैरव, उन्मत्तपैरव, कपालिभैरव, भीषणभैरव तथा संहारभैरव।
२. अध्याय १४३ के छठे श्लोके ्र्माणी आदि आठ शक्तियोंके नाम इस प्रकार आये हैं-क्रह्माणी, म्बे धरौ, कौमारी, वैष्णवो,
वाराही, माहेद्री, चामुण्डा तथा चब्डिका। अध्याय १४४ के ३१वें श्लोकमें 'चष्डिका 'की जगह “महालक्ष्मी का उल्लेख हुआ है।
+ 3८. वनिः कतत ७०७