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३०० , | अग्निपुराण ॥॥

ददद

त ११, वसुदेवता ८, दिशा १०, शर ५, वेद

४, ग्रह ९, ऋतु ६, सूर्य १२; चन्द्रमा १ तथा तिथि

१५--इन सांकेतिक नामों और संख्याओंसे गृहीत

होते है । प्रथम चार ओषधिर्योका अर्थात्‌ भँगरैया,

सहदेश्या, मोरकी शिखा ओर ` पुत्रजीवककी

छाल-इनका चूर्ण बनाकर इनसे धूपका काम

लेना. चाहिये। अथवा इन्हें पानीके साथ पौसकर | उद्वर्तनके

उत्तम उबटन तैयार कर ले और उसे अपने

अङ्गोमिं लगाव ॥ ४-५॥ |

तीसरे चतुष्क (चौक) अर्थात्‌ अपराजिता,

श्वेतार्क, लाजवन्ती लता और मोहलता--इन चार

ओषधियोंसे अञ्जन तैयार करके उसे नेत्रम लगावे

तथा चौथे चतुष्क अर्थात्‌ काला धतूरा, गोरखककड़ी

मेढ़ासिंगी और सेंहुड--इन चार ओषधियोंसे

मिश्रित जलके द्वारा स्नान करना चाहिये। भूङ्गराजवाले

चतुष्कके बादका जो द्वितीय चतुष्क अर्थात्‌

अध:पुष्पा, रुद्रदन्ती, कुमारी तथा रुद्रजटा नामक

ओषधियां हैं, उन्हें पीसकर अनुलेप या उबटन

लगानेका विधान है*॥६॥

अधःपुष्पाको दाहिने पारमे धारण करना

और मेढ़ाश्रृज्ञी--इनके द्वारा सभी कार्ये धूपका

काम लिया जाता है। इन्हें पीसकर उबटन

आदिसे संयुक्त जलक़ा पान बताया. गया ` है।

ऋत्विक्‌ ( भँगरया), वेद (लाजवन्ती), ऋतु (काला

धतूरा) तथा नेत्र (पुत्रजीवक)--इन ओषधियोंसे

तैयार किये हुए चन्दनका तिलक सन लोगोंको

मोहित करनेवाला होता है ॥ ७ -१९९॥

सूर्य (गोरखककड़ी), त्रिदश (काला धतूग),

पक्ष (पुत्रजीवक) और पर्वत (अधःपुष्या) --इन

ओषधियोंका अपने शरीरे लेप कलेसे स्त्री वशे

चाहिये तथा लाजवन्ती आदिको वाम पारमे । | होती है । चन्द्रमा ( मेढ़ासिंगी ), इन्द्र: (रुद्रदन्तिका),

मयूरशिखाको पैरमें तथा घृतकुमारीको मस्तकपर | नाग (मोरशिखा), स्र (घीकुआर)--इन ओषधियोंका

धारण करना चाहिये। रुद्रजटा, गोरखककडी | योनिमे लेप करनेसे स्त्रियां वशमें होती है । तिथि

* ओषधियोंके चतुष्क, काम, विशेष संकेत और उपयोग निष्नाद्धित चक्रसे जानने चाहिये-

| "छन्‌ | नि | न |

परधम चतुष्क | १ भ्राज २ सहदेवी | ३ मयूरशिष्ठा | ४ पुत्रजीवक .

विशेष संकेत १६ वहि जग पक्षरेनेत् घूष-उद्दर्तन

द्वितीय चतुष्क | ५ अधःपुष्पा ६ स्दन्तिका | ७ कुमारौ ८ सज्य

पुनि ७ मनु एष

जिव ११ बसु ८

चतुष्क | ९ विष्णुक्रासता ११ लखालुका | १२ मोहलता

विशेष संकेत दिशा १०

चौथा चतुष्क |१३ कृष्ण धत्तूर | १४ गोरक्षकर्कटी | १५ पेषशृङ्गी १६ स्नुही

विशेष संकेत ऋतु ६ सूर्य १२ चन्रमा १ तिथि १५

दि

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