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हुआ। हे मुने ! कुमार ध्रुबने सुन्दर कीर्ति बढ़ानेके

लिये तीन* हजार दिव्य वर्षोतक तप किया।

उसपर प्रसन्न होकर भगवान्‌ विष्णुने उसे सपर्षियोके

आगे स्थिर स्थान (ध्रुवपद) दिया। ध्रुवके इस

अभ्युदयको देखकर शुक्राचार्यन उनके सुयशका

सूचक यह श्लोक पढ़ा--'अहो! इस श्रुवकी

तपस्याका कितना प्रभाव है, इसका शाखत्र-ज्ञान

कितना अद्भुत है, जिसे आज सप्तर्षि भी आगे

करके स्थित हैं।' उस श्रुवसे उनकी पत्नी शम्भुने

श्लिष्टि ओर भव्य नामक पुत्र उत्पन्न किये।

श्लिष्टिसे उसकी पत्नी सुच्छायाने क्रमशः रिपु,

रिपुंजय, पुष्य, वृकल और वृकतेजा -इन पाँच

निष्पाप पुत्रको अपने गर्भम धारण किया । रिपुके

वीर्यसे बृहतीने चाक्षुष और सर्वतेजाको अपने

गर्भमें स्थानं दिया ॥ १--७॥

चाक्षुषने वीरण प्रजापतिकी कन्या पुष्करिणीके

गर्भसे मनुको जन्म दिवा । मनुसे नड्बलाके गर्भसे

दस उत्तम पुत्र उत्पन्न हुए। [उनके नाम ये है - ]

ऊरु, पूरु, शतथ्ुम्न, तपस्वी, सत्यवाक्‌, कवि,

अग्निष्टत्‌, अतिरात्र, सुद्युम्न ओर अभिमन्यु ।

ऊरुके अंशसे आप्रेयीने अद्ध, सुमना, स्वाति,

क्रतु, अङ्गिरा ओर गय नामक महान्‌ तेजस्वी छः

पुत्र उत्पन्न किये। अङ्गसे सुनीथाने एक ही संतान

वेनको जन्म दिया। वह प्रजाओंकी रक्षा न करके

सदा पापमें ही लगा रहता था। उसे मुनियोंने

कुशोंसे मार डाला। तदनन्तर ऋषियोंने संतानके

लिये वेनके दार्ये हाथका मन्थनं किया । हाथका

मन्थन होनेपर राजा पृथु प्रकट हुए । उन्हें देखकर

मुनिर्योनि कहा --' ये महान्‌ तेजस्वी राजा अवश्य

ही समस्त प्रजाको आनन्दित करेंगे तथा महान्‌

यश प्राप्त करेंगे।' क्षत्रियवंशके पूर्वज वेन-कुमार

* श्रीमद्धागयतके वर्णनानुस्ार

राजा पृथु अपने तेजसे सबको दग्ध करते हुए-से

धनुष और कवच धारण किये हुए ही प्रकट हुए

थे; वे सम्पूर्ण प्रजाकी रक्षा करने लगे ॥ ८--१४॥

राजसूय -यज्ञमे दीक्षित होनेवाले नरेशोंमें वे

सबसे पहले भूपाल थे। उनसे दो पुत्र उत्पन्न हुए।

स्तुतिकर्ममे निपुण अद्धुतकर्मां सूत ओर मागधोंने

उनका स्तवन किया। वे प्रजाओंका रञ्जन करनेके

कारण "राजा" नामसे विख्यात हुए। उन्होने

प्रजाओंकी जौवन-रक्षाके निमित्त अन्नकी उपज

बढ़ानेके लिये गोरूपधारिणी पृथ्वीका दोहन

किया। उस समय एक साथ ही देवता, मुनिवृन्द,

गन्धर्व, अप्सरागण, पितर, दानव, सर्प, लता,

पर्वत और मनुष्यों आदिके द्वारा अपने-अपने

विभिन्न पात्रोमे दुही जानेवाली पृथिवीने सबको

इच्छानुसार दृध दिया, जिससे सबने प्राण

धारण किये । पृथुके जो दो धर्मज्ञ पुत्र उत्पन्न हुए,

उनके नाम थे अन्तर्धिं और पालित। अन्तर्धान

(अन्तर्धि )-के अंशसे उनकी शिखण्डिनी नामवाली

पलीने "हविर्धान" को जन्म दिया। अग्निकुमारी

धिषणाने हविर्धानके अंशसे छः पुत्रको उत्पन्न किया।

उनके नाम ये हैं--प्राचीनबर्हिष्‌ , शुक्र, गय, कृष्ण,

व्रज और अजिन। राजा प्राचीनबर्हिष्‌ प्रायः यज्ञमें

ही लगे रहते थे, जिससे उस समय पृथिवीपर

दूर-दूरतक पूर्वाग्र कुश कैल गये थे। इससे वे

ऐश्वर्यशाली राजा ' प्राचीनवर्हिष्‌" नामसे विख्यात

हुए । वे एक महान्‌ प्रजापति थे ॥ १५--२१॥

प्राचीननर्हिषूसे उनकी पत्नी समुद्र-कन्या सवर्णनि

दस पुत्रोंकों अपने गर्भमें धारण किया। वे सभी

“प्रचेता नामसे प्रसिद्ध हुए और सब-के-सब

धनुर्वेदे पारंगत थे। वे एक समान धर्मका

आचरण करते हुए समुद्रके जलमे रहकर दस

ध्रुव केवल छः मास तपस्या करके सिद्धिके भागौ हुए चे । इस अग्निपुराणमें तपस्याकाल बहुत

अधिक कहा गया है । कल्पभेदसे दोनों हो वर्णन संगत हो सकते हैं।

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