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विषसे संयुक्त करके तीन दिनतक उनका
होम किया जाय तो शत्रु अपनी सेनाके साथ ही
नष्ट हो जाता है॥ ९--१३३॥
राई और नमकसे होम करनेपर तीन दिनमें
ही शत्रुकी सेनामें भगदड़ पड़ जायगी--शत्रु भाग
खड़ा होगा। यदि उसे गदहेके रक्तसे मिश्रित
करके होम किया जाय तो साधक अपने शत्रुका
उच्चाटन कर सकता है-वहाँसे भागनेके लिये
उसके मनमें उचाट पैदा कर सकता है। कौएके
रक्तसे संयुक्त करके हवन करनेपर शत्रुकों उखाड़
फैंका जा सकता है। साधक उसके बधमें समर्थ
हो सकता है तथा साधकके मनमें जो-जो इच्छा
होती है, उन सब इच्छाओंको यह पूर्ण कर लेता
है। युद्धकालमें साधक हाथीपर आरूढ़ हो, दो
कुमारियोंके साथ रहकर, पूर्वोक्त मन्त्रद्वारा शरीरको
सुरक्षित कर ले; फिर दूरके शङ्खं आदि वाद्योंको
पूर्वोक्त महामारी-विद्यासे अभिमन्त्रित करे। तदनन्तर
महामायाकी प्रतिमासे युक्त वस्त्रको लेकर समराड्रणमें
वहाँ कुमारी कन्याओंको भोजन करावे। फिर
पिण्डीको घुमाये। उस समय साधक यह चिन्तन
करे कि शत्रुकी सेना पाषाणकी भाँति निश्चल हो
गयी है॥ १४--१९॥
वह यह भी भावना करे कि शत्रुकी सेनामें
लड़नेका उत्साह नहीं रह गया है, उसके पाँव
उखड़ गये हैं और वह बड़ी घबराहटमें पड़ गयी
है। इस प्रकार करनेसे शत्रुकी सेनाका स्तम्भन हो
जाता है। (वह चित्रलिखितकी भाँति खड़ी रह
जाती है, कुछ कर नहीं पाती।) यह मैंने
स्तम्भनका प्रयोग बताया है। इसका जिस-किसी
भी व्यक्तिको उपदेश नहीं देना चाहिये। यह
तीनों लोकोंपर विजय दिलानेबाली देवी “माया'
कही गयी है और इसकी आकृतिसे अङ्कित
वस्त्रकों 'मायापट” कहा गया है। इसी तरह
दुर्गा, भैरवी, कुब्जिका, रुद्रदेव तथा भगवान्
नृसिंहकी आकृतिका भी वस्त्रपर अङ्कन किया
जा सकता है। इस तरहकी आकृतियोंसे अद्भत
ऊँचाईपर फहराये और शत्रुसेनाकी ओर मुँह | पट आदिके द्वारा भी यह स्तम्भनका प्रयोग सिद्ध
करके उस महान् पटको उसे दिखाये। तत्पश्चात् हो सकता है॥ २०-२१॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणे 'महामारी-विद्याका वर्णन” नामक
एक सौ सतीत्वं अध्याय पूरा हुआ॥ १३७॥
एक सौ अड़तीसबाँ अध्याय
तन्रविषयक छः
महादेवजी कहते हैँ ~ पार्वती ! सभी मन्त्रके
साध्यरूपसे जो छः कर्म कहे गये हैं, उनका वर्णन
करता हूँ, सुनो। शान्ति, वश्य, स्तम्भन, देष,
उच्वाटन और मारण-ये छः कर्म हैं। इन सभी
कर्मोपिं छः सम्प्रदायः अथवा विन्यास होते हैं,
जिनके नाम इस प्रकार हैं-पक्कत, योग, रोधक,
सम्पुट, ग्रन्थन तथा विदर्भ। भोजपत्र आदिपर
पहले जिसका उच्चाटन करना हो, उस पुरुषका
नाम लिखे। उसके बाद उच्चारन- सम्बन्धी मन्त्र
कर्मोका वर्णन
लिखे। लेखनके इस क्रमको 'पक्कतत' नामक
विन्यास या सम्प्रदाय समझना चाहिये। यह
उच्चकोटिका महान् उच्वाटनकारी प्रयोग है।
आदियें मन्त्र लिखा जाय फिर साध्य व्यक्तिका
नाम अङ्कित किया जाय। यह साध्य बीचमें रहे ।
इसके लिये अन्तमं पुनः मन्त्रका उल्लेख किया
जाय । इस क्रमको योग" नामक सम्प्रदाय कहा
गया है। शत्रुके समस्त कुलका संहार करनेके
लिये इसका प्रयोग करना चाहिये ॥ १-२ \॥