समस्त भूतोंका संहार करनेवाली हो, मेरे अमुक
शत्रुका हनन करो, हनन करो। ॐ उसे जलाओ,
जलाओ। ॐ पकाओ, पकाओ। ॐ कारो,
क्राटो। ॐ मारो, मारो । ॐ उखाड़ फेंको,
उखाड़ फेंको। ॐ समस्त प्राणियोंकों वशमें
करनेवाली और सम्पूर्ण कामनाओंको देनेवाली!
हुं फट् स्वाहा ॥ २॥
अङ्गन्यास
" ॐ मारि हृदयाय नमः ।'--इस वाक्यको
बोलकर दाहिने हाथकी मध्यमा, अनामिका और
तर्जनी अँगुलियोंसे हृदयका स्पर्श करे। ' ॐ
महामारि शिरसे स्वाहा ।'-- इस वाक्यको बोलकर
दाहिने हाथसे सिरका स्पर्श करे । ' ॐ कालरात्रि
शिखायै वौषट् ।'-- इस वाक्यको बोलकर दाहिने
हाथके अँगूठेसे शिखाका स्पर्शं करे । ' ॐ कृष्णवर्णे
खः कवचाय हुम्।--इस वाक्यको बोलकर
दाहिने हाथकी पाँचों अँगुलियोंसे बायीं भुजाका
और बायें हाथकी पाँचों अँगुलियोंसे दाहिनी
भुजाका स्पर्श करे। ' ॐ तारकाक्षि विद्युजिड्े
सर्वसत्त्वभयंकरि रक्ष रक्ष सर्वकार्येषु हूं त्रिनेत्राय
वषट् ।'--इस वाक्यको बोलकर् दाहिने हाथकी
अँगुलियोंके अग्रभागसे दोनों नेत्रों और ललाटके
मध्यभागका स्पर्श करे। ' ॐ महामारि सर्वभूतदमनि
महाकालि अस्त्राय हुँ फट्।'--इस वाक्यको
बोलकर दाहिने हाथको सिरके ऊपर एवं बायीं
ओरसे पीछेकी ओर ले जाकर दाहिनी ओरसे
आगेकी ओर ले आये और तर्जनी तथा मध्यमा
अँगुलियोंसे बाय हाथकी हथेलीपर ताली
बजाये॥ ३॥
महादेवि! साधकको यह अङ्गन्यास अवश्य
करना चाहिये । वह मुर्देपरका वस्त्र लाकर उसे
चौकोर फाड़ ले। उसकी लंबाई- चौडाई तोन-
तीन हाथकी होनी चाहिये। उसी वस्त्रपर अनेक
प्रकारके रंगोंसे देबीकी एक आकृति बनावे,
जिसका रंग काला हो। वह आकृति तीन मुख
और चार भुजाओंसे युक्त होनी चाहिये। देवीकी
यह मूर्ति अपने हाथोंमें धनुष, शूल, कतरनी और
खट्वाङ्ग (खाटका पाया) धारण किये हुए हो।
उस देवीका पहला मुख पूर्वं दिशाकौ ओर हो
और अपनी काली आभासे प्रकाशित हो रहा हो
तथा ऐसा जान पड़ता हो कि दृष्टि पड़ते ही वह
अपने सामने पड़े हुए मनुष्यको खा जायगी।
दूसरा मुख दक्षिण भागमें होना चाहिये। उसकी
जीभ लाल हो और वह देखनेमें भयानक जान
पड़ता हो। वह विकराल मुख अपनी दाढ़ोंके
कारण अत्यन्त उत्कर और भयंकर हो और
जीभसे दो गलफर चाट रहा हो। साथ ही ऐसा
जान पड़ता हो कि दृष्टि पड़ते ही यह घोड़े
आदिको खा जायगा॥ ४--७ ६ ॥
देवीका तीसरा मुख पश्चिमाभिमुख हो । उसका
रंग सफेद होना चाहिये। वह ऐसा जान पड़ता हो
कि सामने पड़नेपर हाथी आदिको भी खा
जायगा। गन्ध-पुष्प आदि उपचारों तथा घी-मधु
आदि नैवेद्यद्रारा उसका पूजन करे॥ ८ ३॥
पूर्वोक्त मन्त्रका स्मरण करनेमात्रसे नेत्र और
मस्तक आदिका रोग नष्ट हो जाता है। यक्ष और
राक्षस भी वशमें हो जाते हैं और शत्रुओंका नाश
हो जाता है। यदि मनुष्य क्रोधयुक्त होकर,
निम्ब-वृक्षकी समिधाओंको होम करे तो उस
होमसे ही वह अपने शत्रुको मार सकता है, इसमें
संशय नहीं है। यदि शत्रुकी सेनाकी ओर मुँह
करके एक सप्ताहतक इन समिधाओंका हवन
किया जाय तो शत्रुकी सेना नाना प्रकारके रोगोंसे
ग्रस्त हो जाती है और उसमें भगदड़ मच जाती
है। जिसके नामसे आठ हजार उक्त समिधाओंका
होम कर दिया जाय, वह यदि ब्रह्माजीके द्वारा
सुरक्षित हो तो भी शीघ्र ही मर जाता है। यदि
धतूरेकी एक सहस्र समिधाओंको रक्त और