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एक सौ तैतीसवां अध्याय

नाना प्रकारके बलोंका विचार

शंकरजी कहते हैं-- अब सूर्यादि ग्रहोंकी

राशियोंमें पैदा हुए नवजात शिशुका जन्म-फल

क्षेत्राधिपके अनुसार वर्णन करूँगा। सूर्यके गृहमें

अर्थात्‌ सिंह लग्नमें उत्पन्न बालक समकाय, कभी

कृशाङ्ग, कभी स्थूलाङ्ग, गौरवर्ण, पित्त प्रकृति,

लाल नेत्रोंबाला, गुणवान्‌ तथा वीर होता है।

चन्द्रके गृहमें अर्थात्‌ कर्कं लग्नका जातक भाग्यवान्‌

तथा कोमल शरीरवाला होता है । ङ्गलके गृहमे

अर्थात्‌ मेष तथा वृश्चिक लग्नॉंका जातक वातरोगी

तथा अत्यन्त लोभी होता है । बुधके गृहमे अर्थात्‌

मिथुन तथा कन्या लग्नोंका जातक बुद्धिमान्‌,

साथ धनका लाभ होता है । शनिकी दशामें नाना

प्रकारके रोग उत्पन्न होते हैँ । राहुका दर्शन होनेपर

अर्थात्‌ ग्रहण लगनेपर निश्चित स्थानपर निवास,

दिनमें ध्यान और व्यापारका काम करना

चाहिये ॥ ६--८ ३ ॥

यदि वाम श्वास चलते समय नामका अक्षर

विषम संख्याका हो तो वह समय मङ्गल, शतिं

तथा राहुका रहता है । उसमें युद्ध करनेसे विजय

होती है। दक्षिण श्वास चलते समय यदि नामका

अक्षर सम संख्याका हो तो वह समय सूर्यका

रहता है । उसमें व्यापार-कार्य निष्फल होता है,

सुन्दर तथा मानी होता है । गुरुके गृहमे अर्थात्‌ | किंतु उस समय पैदल संग्राम करनेसे बिजय होती

धनु तथा मीन लग्नोंका जातक सुन्दर और

अत्यन्त क्रोधी होता है । शुक्रके गृहमे अर्थात्‌ तुला

तथा वृष लग्नोंका जातक त्यागी, भोगी एवं सुन्दर

शरीरवाला होता है। शनिके गृहमे अर्थात्‌ मकर

तथा कुम्भ लग्नोंका जातक बुद्धिमान्‌, सुन्दर तथा

मानी होता है। सौम्य लग्नका जातक सौम्य

स्वभावका तथा क्रूर लग्नका जातक क्रूर स्वभावका

होता है*॥ १--५॥

गौरि! अब नाम-राशिके अनुसार सूर्यादि

ग्रहोका दशा-फल कहता हूँ। सूर्यकी दशामें

हाथी, घोडा, धन-धान्य, प्रबल राज्यलक्ष्मीकी

प्राप्ति और धनागम होता है। चन्द्रमाकी दशामें

दिव्य स्त्रीकी प्राप्ति होती है। मड्गलकी दशामें

भूमिलाभ और सुख होता है। बुधकी दशामें

भूमिलाभके साथ धन-धान्यकी भी प्राप्ति होती

है। गुरुकी दशामें घोड़ा, हाथी तथा धन मिलता

है। शुक्रकी दशामें खाद्यान्न तथा गोदुग्धादिपानके

है और सवारीपर चढ़कर युद्ध करनेसे मृत्यु होती

है॥ ९--११॥

ॐ हूँ, ॐ हूँ, ॐ स्फें, अस्त्रं मोटय, ॐ

चूर्णय, चूर्णय, ॐ सर्वशत्रं मर्दय, मर्दय ॐ हूं

ॐ हः फट्‌।- इस मन्त्रका सात बार न्यास

करना चाहिये। फिर जिनके चार, दस तथा बीस

भुजां हैं, जो हाथोंमें त्रिशूल, खट्वाङ्ग, खन्न

और कटार धारण किये हुए हैं तथा जो अपनी

सेनासे विमुख और शत्रु-सेनाका भक्षण करनेवाले

हैं, उन भैरवजीका अपने इदयमें ध्यान करके

शत्रु-सेनाके सम्मुख उक्त मन्त्रका एक सौ आठ

बार जप करे। जपके पश्चात्‌ डमरूका शब्द

करनेसे शत्रु-सेना शस्त्र त्यागकर भाग खड़ी होती

है॥ १२--१५॥

पुनः शत्रु-सेनाकी पराजयका अन्य प्रयोग

अतलाता हूँ। श्मशानके कोयलेको काक या

उल्लृकी विष्ठामें मिलाकर उसीसे कपड़ेपर शत्रुकी

* यहाँपर मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, कुम्भ - ये राशियाँ तथा लान कूर हैं और वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर, मोन -ये

राशियाँ तथा लग्न स्तौम्य है । इसके लिये वराहमिहिरते ' लषुजातक ' तथा 'यृहज्जातक' में लिखा है --

"पुस्त कूराक़ूरी चरम्थिरद्विस्वभ्रवसंतञाच ।'

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