(अब युद्धमें जय-पराजयका लक्षण बतलाते
है -) युद्धारम्भके समय सेनापति पहले जिसका
नाम लेकर बुलाता है, उस व्यक्तिके नामका
आदि-अक्षर यदि "दीर्घ" हो तो उसकी घोर
संग्राममे भी विजय होती है । यदि नामका आदि-
वर्णं "हस्व ' हो तो निश्चय ही मृत्यु होती है।
जैसे - एक सैनिकका नाम ' आदित्य” और दूसरेका
नाम है--' गुरु'। इन दोनोंमें प्रथमके नामके आदिमें
*आ' दीर्घ स्वर है और दूसरेके नामके आदिमें 'उ'
हस्व स्वर है; अतः यदि दीर्घ स्वरवाले व्यक्तिको
बुलाया जायगा तो विजय और हस्ववालेको
बुलानेपर हार तथा मृत्यु होगी ॥ ४--७॥
(अब “नरचक्र' के द्वारा . घाताङ्गका निर्णय
करते हैं--) नक्षत्र-पिण्डके आधारपर नेर-
चक्रका वर्णन करता हूँ। पहले एक मनुष्यकां
आकार बनावे। तत्पश्चात् उसमें नक्षत्रोंका न्यास
करे। सूर्यके नक्षत्रसे नामके नक्षत्रतक गिनकर
संख्या जान ले। पहले तीनको नरके सिरमें, एक
मुखमें, दो नेत्रमें, चार हाथमे, दो कानमे, पाँच
हदये ओर छः पैरोंमें लिखे। फिर नाम-नक्षत्रका
स्पष्ट रूपसे चक्रके मध्यमे न्यास करे। इस तरह
लिखनेपर नरके नेत्र. सिर, दाहिना कान, दाहिना
हाथ, दोनों पैर, हृदय, ग्रीवा, बायाँ हाथ और
गुद्यङ्ग्मेसे जहाँ शनि, मङ्गल, सूर्य तथा राहुके
नक्षत्र पड़ते हों, युद्धमें उसी अङ्गे घात (चोर)
होता दै ॥८--१२॥
नजर चक्र
पश्चिमतक तेरह रेखाएँ बनाकर पुनः उत्तरसे | सबको जोड़कर पिण्ड बनाये। उसमें सातसे भाग
दक्षिणतक छः तिरछी रेखाएं खींचे। (इस तरह | देनेपर एक आदि शेषके अनुसार सूर्यादि ग्रहोंका
लिखनेपर जयचक्र बन जायगा।) उसमें अ से ह | भाग जाने। १ शेषमें सूर्य, २ में चन्द्र, ३ में भौम,
तक अक्षरोंकों लिखे और १०१९।७।१२।४। | ४ में बुध, ५ में गुरु, ६०में शुक्र, ७ में शनिका
११।१५। २४। १८। ४। २७। २४-इन अड्भोंका | भाग होता है - यों समझना चाहिये। जव सूर्य, शनि
भी न्यास करे। अर्को कपर लिखकर अकारादि | और मङ्गलका भाग आये तो विजय होती है तथा
अक्षरोंको उसके नीचे लिखे।शत्रुके नामाक्षरके | शुभ ग्रहके भागमें संधि होती है ॥ १३--१५ $॥