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बुद्धि और वृक्षे पुष्प तथा फल अधिक लगते | कर लेते हैं और राजाओंके लिये हितकारक

है । प्रजा आरोग्य रहती है । पृथ्वी धान्यसे परिपूर्ण | सुभिक्ष होता है ॥ १५-१६ ३ ॥

हो जाती है। अन्नोंका भाव सस्ता तथा देशम | “ग्राम' दो प्रकारका होता है -पहलेका नाम

सुकालका प्रसार हो जाता है, किंतु राजाओंमें | ' मुखग्राम ' है ओर दूसरेका नाम 'पुच्छग्राम '- है ।

परस्पर घोर संग्राम होता रहता है ॥ १--१४॥ | चन्दर, राहु तथा सूर्य जब एक राशिमें हो जाते हैं,

ज्येष्ठा, रोहिणी, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, | तब उसे " मुखग्राम' कहते हैं। राहुसे सातवें

उत्तराषाढा, सातवाँ अभिजित्‌-इन नक्षत्रोंका नाम | स्थानको ' पुच्छग्राम' कहते हैँ । सूर्यके नक्षत्रसे

“महेन्द्र मण्डल ' है । इसमें यदि पूर्वोक्त उत्पात हों | पंद्रहवें नक्षत्रमें जब चन्द्रमा आता है, उस समय

तो प्रजा प्रसन्न रहती है, किसी प्रकारके रोगका | तिथि-साधनके अनुसार “ सोमग्राम ' होता है अर्थात्‌

भय नहीं रह जाता। राजा लोग आपसमें संधि | पूर्णिमा तिथि होती है *॥ १७ -१९॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें “विविध मण्डलोका वषत " नामक

एक सौ तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १३० ॥

एक सौ इकतीसवाँ अध्याय

घातचक्र आदिका वर्णन

शंकरजी कहते हैं-- पूर्वादि दिशाओं | तिथियोंका न्यास करे। इस चैत्र- चक्रमे पूर्वादि

प्रदक्षिणक्रमसे अकारादि स्वको लिखे। उसमें | दिशाओमं स्पर्श- वर्णको लिखनेसे जय-

शुक्लपक्षकी प्रतिपदा, पूर्णिमा, त्रयोदशी, चतुर्दशी, | पराजयका तथा लाभका निर्णय होता है।

केवल शुक्लपक्षकी एक अष्टमी (कृष्णपक्षकी | विषम दिशा, विषम स्वर तथा विषम वर्णमें शुभ

अष्टमी नहीं), सप्तमी, कृष्णपक्षे प्रतिपदासे | होता है ओर सम दिशा आदिमे अशुभ होता

लेकर त्रयोदशीतक (अष्टमीको छोड़कर ) द्वादश | है ॥ १--३॥

चैत्रचक्रम्‌

कटनलञअओआ अग्नि. शु. ष. ७।८ ति.

ॐअ अः ईशान पूर्व ईखठपव

र धझ कू, १२।१३ ति.

ओ ओ

यजद उत्तर

कृ, १०।१६ ति.

वायुर , पञ्चम नैत

ए कृ० ७।९ ति. कृ. ५।६ ति कृ. ३।४ ति

हछथम ल्लृ ऋक्‌

च.त.भ. स.

इस चक्रमे शुक्लपश्चकौ १।७।८।१३।१४। १५ ये तिथियाँ ली गयी रहै । कृष्णपक्षे अष्टमी छोड़कर

१।२। ३।४।५।६।७।९।१०।११।१२।१३ ये तिधियाँ लो गयी हैं।

* सूर्यके साथ चन्द्रमा जब रहेगा, तब अमाबास्या तिथि होगी । सूर्यके नक्षत्रसे पंद्रहवें नक्षजमें चन्द्रमा आयेगा तो सूर्यसे सातवीं

राशिमें चन्द्रमा रहेगा; क्योंकि सवा दो नक्षत्रकों एक राशि होती है। जब सूर्यसे सातौ राशिमें चन्द्रमा रहता है, तब पूर्णिमा ही तिथि

होती है। उसे हौ 'सोमग्राम' कहते हैं।

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