सोलहवाँ अध्याय
बुद्ध और कल्कि-अवतारोंकी कथा
अग्निदेव कहते हैं-- अब मैं बुद्धावतारका | ही भक्षण करेंगे॥ १--७॥
वर्णन करूँगा, जो पढ़ने और सुननेवालोंके
मनोरथको सिद्ध करनेवाला है। पूर्वकालमें देवताओं
और असुरोंमें घोर संग्राम हुआ। उसमें दैत्योंने
देवताओंको परास्त कर दिया। तब देवतालोग
“ज्राहि-त्राहि' पुकारते हुए भगवान्की शरणमे
गये। भगवान् मायामोहमय रूपमें आकर राजा
शुद्धोदनके पुत्र हुए। उन्होंने दैत्योंको मोहित
किया और उनसे बैदिक धर्मका परित्याग करा
दिया। वे बुद्धके अनुयायी दैत्य “बौद्ध' कहलाये।
फिर उन्होंने दूसरे लोगोंसे वेद-धर्मका त्याग
करवाया। इसके बाद माया-मोह ही “आर्हत'
रूपसे प्रकट हुआ। उसने दूसरे लोगोंकों भी
“आरहत' बनाया। इस प्रकार उनके अनुयायी वेद-
धर्मसे वञ्चित होकर पाखण्डी बन गये। उन्होंने
नरकमें ले जानेवाले कर्म करना आरम्भ कर
दिया। वे सब-के-सब कलियुगके अन्तर्मे वर्णसंकर
होंगे और नीच पुरुषोंसे दान लेंगे। इतना ही नहीं,
वे लोग डाकू और दुराचारी भी होंगे। वाजसनेय
(बृहदारण्यक)-मात्र ही ' वेद ' कहलायेगा। वेदकी
दस-पाँच शाखां हौ प्रमाणभूत मानी जायँगी।
धर्मका चोला पहने हुए सब लोग अधर्मे ही
तदनन्तर भगवान् कल्कि प्रकट होंगे। वे
श्रीविष्णुयशाके पुत्ररूपसे अवतीर्णं हो याज्ञवल्क्यको
अपना पुरोहित बनायेंगे। उन्हें अस्त्र-शस्त्र-विद्याका
पूर्ण परिज्ञान होगा। वे हाथमे अस्त्र-शस्त्र लेकर
म्लेच्छोंका संहार कर डालेंगे तथा चारों वर्णों ओर
समस्त आश्रमॉमें शास्त्रीय मर्यादा स्थापित करेगे ।
समस्त प्रजाको धर्मके उत्तम मार्गम लगायेंगे।
उसके बाद श्रीहरि कल्किरूपका परित्याग करके
अपने धामर्मे चले जायँंगे। फिर तो पूर्ववत्
सत्ययुगका साम्राज्य होगा। साधुत्रष्ठ! सभी वर्ण
ओर आश्रमके लोग अपने-अपने धर्में दृढ़तापूर्वक
लग जार्येगे। इस प्रकार सम्पूर्ण कल्पों तथा
मन्वन्तरोंमें श्रीहरिके अवतार होते हैं। उनमेंसे
कुछ हो चुके हैं, कुछ आगे होनेवाले हैं; उन
सबकी कोई नियत संख्या नहीं है। जो मनुष्य
श्रीविष्णुके अंशावतार तथा पूर्णावतारसहित दस
अवतारोंके चरित्रोंका पाठ अथवा श्रवण करता
है, वह सम्पूर्ण कामनाओंको प्राप्त कर लेता है
तथा निर्मलहदय होकर परिवारसहित स्वर्गको
जाता है। इस प्रकार अवतार लेकर श्रीहरि धर्मकी
व्यवस्था और अधर्मका निराकरण करते हैं। वे
रुचि रखनेवाले होंगे। राजारूपधारी म्लेच्छ मनुष्योंका | ही जगत्की सृष्टि आदिके कारण हैं॥ ८--१४॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'बुद्ध तथा काल्कि-- इन दो अयतारोंका वर्णन ' नामक
सोलहवाँ अध्याय पूरा हआ ॥ १६ ॥
न,
सत्रहवाँ अध्याय
जगत्की सृष्टिका वर्णन
अग्निदेव कहते हैं-- ब्रह्यन्! अब मैं जगत्की | सृष्टिके आदिकारण भी वे ही हैं। वे ही निर्गुण
सृष्टि आदिका, जो श्रीहरिकौ लीलामात्र है, वर्णन | हैं और वे ही सगुण हैं। सबसे पहले सत्स्वरूप
करूँगा; सुनो । श्रीहरि ही स्वर्गं आदिके रचयिता | अव्यक्त ब्रह्म ही धा; उस समय न तो आकाश
हैं। सृष्टि और प्रलय आदि उन्दीकि स्वरूप हैं।। था और न रात-दिन आदिका ही विभाग था।