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# ४ 8 8 # ## ४४५४४: कक कक कक कफ कक कक ४ ७ ७ छा

हो।** श्राद्ध आदिके अवसरपर इसका पाठ | किया हुआ श्राद्ध अक्षय होता है। आशिन शुक्ला

करनेसे श्राद्ध पूर्ण एवं ब्रह्मलोक देनेवाला होता | नवमी, कार्तिककी द्वादशी, माघ तथा भाद्रपदकी

है । यदि पितामह जीवित हो तो पुत्र आदि अपने | तृतीया, फाल्गुनकी अमावास्या, पौष शुक्ला

पिताका तथा पितामहके पिता और उनके भी | एकादशी, आषाढ़की दशमी, माघमासकी ससी,

पिताका श्राद्ध करे। यदि प्रपितामह जीवित हो | श्रावण कृष्णपक्षकी अष्टमी, आषाढ, कार्तिक,

तो पिता, पितामह एवं वृद्धप्रपितामहका श्राद्ध | फाल्गुन तथा ज्येष्तकी पूर्णिमा -ये तिथियाँ स्वायम्भुव

करे। इसी प्रकार माता आदि तथा मातामह | आदि मनुसे सम्बन्ध रखनेवाली है । इनके आदिभागमें

आदिके श्राद्धमे भी करना चाहिये। जो इस | किया हुआ श्राद्ध अक्षय होता है। गया, प्रयाग, गङ्ग,

श्राद्धकल्पका पाठ करता है, उसे श्राद्ध करनेका | कुरुक्षेत्र, नर्मदा, श्रीपर्वत, -प्रभास, शालग्रामतीर्थ

फल मिलता है ॥ ५२--५६॥ (गण्डकी), काशी, गोदावरी तथा श्रीपुरुषोत्तमक्षेत्र

उत्तम तीर्थे, युगादि ओर मन्वादि तिथिमें | आदि तीर्थम श्राद्ध उत्तम होता है॥ ५७ -६२॥

इस प्रकार आदि आण्नेदध महापुराणमें 'आद्ध-कल्पका वर्णन” नामक

एक सौ सत्रहवाँ अध्याय दू हुआ॥ ११७॥

द ^- ^

एक सौ अठारहवाँ अध्याय

भारतवर्षका वर्णन

अग्निदेव कहते हैं-- समुद्रके उत्तर और | भारतकी स्थिति मध्यम है । इसमें पूर्वकी ओर

हिमालयके दक्षिण जो वर्षं है, उसका नाम | किरात और (पश्चिमे) यवन रहते हैं। मध्यभागमें

“भारत” है । उसका विस्तार नौ हजार योजन है । | ब्राह्मण आदि वर्णका निवास है। वेद-स्मृति

स्वर्ग तथा अपवर्ग पानेकौ इच्छावाले पुरुषोकि | आदि नदियाँ पारियात्र पर्वतसे निकली हैं।

लिये यह कर्मभूमि है। महेन्द्र, मलय, सह्य, | विन्ध्याचलसे नर्मदा आदि प्रकट हुई है । सहया पर्वतसे

शुक्तिमान्‌, हिमालय, विन्ध्य ओर पारियात्र -ये | तापी, पयोष्णी, गोदावरी, भीमरथी ओर कृष्णवेणा

सात यहाँके कुल-पर्वत हैं। इन्द्रद्वीप, कसेरु, | आदि नदियोंका प्रादुर्भाव हुआ है ॥ ५-७॥

ताप्रवर्ण, गभस्तिमान्‌, नागद्वीप, सौम्य, गान्धर्वं | मलयसे कृतमाला आदि और महेन्द्र पर्बतसे

ओर वारुण--ये आठ द्वीप हैँ । समुद्रसे घिरा हुआ | त्रिसामा आदि नदियाँ निकली हैं। शुक्तिमानूसे

भारत नवँ द्वीप है॥ १--४॥ कुमारी आदि और हिमालयसे चन्द्रभागा आदिका

भारतद्रीप उत्तरसे दक्षिणकी ओर हजारों | प्रादुर्भाव हुञा है। भारतके पश्चिमभागे कुरु,

योजन लंबा है। भारतके उपर्युक्त नौ भाग है । | पाञ्चाल और मध्यदेश आदिकौ स्थिति है ॥ ८॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महाएयणमें “ भारतवर्कका वर्णन” नामक

एक सौ अठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ११८ ॥

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* क्ास्याधा दक्षाएण्ये मृगाः कालझो गिरौ । चक्रवाकाः शरद्रीपे हंसा: सरसि मानसे ॥

तेऽपि जाता: कुरशचेत्रे ब्राह्मणा वेदपारगाः । प्रस्थिता दूरमध्वानं यूय॑ तेभ्योऽवसरीदत ॥

(अग्नि पुर ११७। ५६५७)

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