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पिण्डदान करे । दूसरोंका मत है कि ब्राह्मण जब | शुभागमन होता रहे। हमारे पास माँगनेवाले

भोजनके पश्चात्‌ हाथ-मुँह धोकर आचमन कर | आरे, किंतु हम किसीसे न माँगें।' फिर स्वधा-

लें, तब पिण्डदान देना चाहिये। आचमनके पश्चात्‌ | ब्राचनके लिये पिण्डॉपर पवित्रकसहित कुश

जल, फूल और अक्षत दे॥ २२--२५३ ॥ बिछावे और ब्राह्मणोंसे पूछे--“मैं स्वधा-वाचन

फिर अक्षय्योदक देकर मनुष्य आशीर्वादकी | कराऊँगा।' ब्राह्मण आज्ञा दें-'स्वधा-वाचन

प्रार्थना करे'। ' ॐ अघोराः पितरः सन्‍्तु।' (मेरे | | कराओ।' तब श्राद्धकर्ता पुरुष इस प्रकार कहे--

पितर सौम्य हों।) ऐसा कहकर जल गिरावे, फिर | “ब्राह्मणो! आपलोग मेरे पिता, पितामह और

प्रार्थना करे-' हमारा गोत्र सदा ही बढ़ता रहे, | प्रपितामहके लिये स्वधा-वाचन कर!" ब्राह्मण

हमारे दाता भी निरन्तर अभ्युदयशील हों, बेदोंकी | कहें--' अस्तु स्वधा ।' तदनन्तर " ऊर्ज वहन्तीरमृतं

पठन-पाठन-प्रणाली बढ़े। संतानोंकी भी | घृतं पयः कीलालं परिखुतम्‌ स्वधा स्थ तर्पयत

वृद्धि हो। हमारी श्रद्धामें कमी न आवे; हमारे | मे पितृन्‌" (यजु० २। २४)-इस मन्त्रसे कुशॉपर

पास देने योग्य बहुत सामान संचित रहे; हमारे | दुग्ध-मिश्रित जलकौ दक्षिणाग्रधारा गिरावे,* फिर

यहाँ अन्न भी अधिक हो । हम अतिथियोंको प्रास्त | (सव्य होकर देवार्घ्यपात्रको हिला दे और

करते रहें अर्थात्‌ हमारे घरपर अतिथियोंका | पितरोके) अर्ध्यपात्रको उत्तान करके देवश्राद्ध

१. इसके पहले कुछ दूरपर दश्च कुश बिछाकर भूमिकों सौंच दे और तिल-सृतसहित अन्न एवं जल लेकर--

आस्तिदेग्पाक्न ये जीवा ये5प्पदग्धा: कुले मम । भूमौ दत्तेन तृप्यन्तु तृषा यान्तु परां गतिम्‌ च

पूर्वो कुशोंपर वह अन्न-जल बिछेर दे । तदनन्तर आचमन करके भागवानूका स्मरण कर तीन बार गायत्रो-मन्त्रका

जप करे । इसके बाद अपसख्यभावसे बालूकी चौकोर वेदी बनाकर उसके ऊपर कुशके मूलसे प्रादेशमात्र तीते रेखा खौंचे; उस समय * ॐ

अपहता०” हत्यादि मन्त्र पढ़े। फिर रेखाके चारों ओर उल्मुकसे अद्ञारं-भ्रमण करावे। इसका नत्र इस प्रकार है -*ॐ ये रूपाणि

अतिमुझमाता असुराः सन्तः स्वधवा चरन्ति। परापुरो निपुरो ये भरन्त्यग्निष्ठाल्लोकात्प्रणुदात्यस्मात्‌ #' (यजु० २। ३०) तत्पश्चात्‌ रेखापर सीने

कुश बिछाकर सव्यभावसे गायत्री-जप करके फिर अपसव्यभावघे दोनेसें जल, तिल, गन्ध-पुष्प लेकर ' ॐ अध्यामुकगोत्र पितः अमुकशर्मन्‌

अपुकशाद्धे फिण्डस्थानेउजायनेतिश्य ते स्वधा" पेस्व कहकर कुशपर जल गिरावे। यह 'अवनेजन' है। पिण्ड टेनेके बाद पिण्डके ऊपर

उसी पात्रसे जल गिराकर उसी प्रकार संकल्प पढ़कर प्रत्यवनेजन किया जाता है । उसमें ' प्रत्यवनेनिक्ष” कहना चाहिये। पिष्डदानका

संकल्प इस प्रकार है- ओमद्यामुकगोत पितः अमुकशर्मन्‌ अपुकश्नाद्धे एष पिण्डस्ते स्थधा।' इसी प्रकार पितामक आदिको भी देना

चाहिये । पिण्डदानके अनन्तर पिण्डके आधारभूत कुम अफो हाथ पेंछकर कहे -- 3» लेपभागभुज: पितरसतृष्यततु।' फिर सब्यभावसे

तीन कार आचमन करके श्रीहरिका स्मरण करे । तदनन्तर अपसव्यभावसे दक्षिणनी ओर मुँह करके कड़े--'अग्र पितरों मादयध्व॑

यथाभागमावुषायध्यस्‌।' (यजु० २। ३१) फिर जामावर्तसे उत्तकों ओर मुँहकर श्वास रोककर ग्रसन्नचित्त हो प्रकाशमात्र मूर्विवाले पितरोंका

ध्याने करते हुए फिर उसौ सामे लौटकर दक्षिणाभिमुछ हो जव और कहे--' अमीमदन्त फितरों यथाभागमावृषायिष्त।' (यजु० २। ३१)

इसके याद्‌ पहलेके अवनेजनपात्रमें जो शेष जल हो, उसे पिण्डपर गिाकर प्रत्यवनेजन दें। उसका संकल्प अवनेजतकी ही भाँति है।

*अवनेनिक्ष्य को 'प्रत्यवनेनिक््व' कहना चाहिये। यहुवचनमें ' प्रत्यवनेतिग्ध्वम्‌' का उच्चारण करता उचित है।

२. प्रत्यवनेजनके चद नीवी-विखंसन करके सव्यभावसे आचमन करे। फिर अपसत्य हो नाये हाथसे दाहिने हाथमें सूत्र लेकर ' 55

जपो व: फितरों रसाय नमो वः पित्तरः शोषाय नमो व: पितरो जीकछय नमो वः पितरः स्वधायै नमो वः पितरो पोराय नमो व: पितरो मन्यवे

नमो वः पितरः पितरो नमो यो गृहाश्ः पितरों दशसतों वःप्ठिरो देष्म ' (यजु० २।३२)-इस मनत्रका पट करके ' एतद्‌ व: पितरो वास:

(कमु २।३२)- देता कहते हुए छहों पिण्डॉपर सूत्र रखकर संकल्प को--' अद्यापुकगोत्र पित: ( पितामह, प्रपितामह आदि) अमुकशर्मन्‌

पिण्डे एतत्ते वास: स्वधा ।' तत्पश्चात्‌ " ॐ शिया आपः खनतु ।' कहकर जल, " ॐ सौमनस्यम्‌ अस्तु ।' इस वाक्यका उच्चारण

करके फूल, ' ॐ> अक्षतं चारिष्टमस्तु।' कहकर अकषत अभ्रपाप्रोपर डाले। फिर मोटक, तिल और जल लेकर " ॐ> अधछामुकगोत्रस्य पितुः

अमुकज्र्मण: अमुक श्राद्धे दत्तान्येतान्यन्रफनादिकानि अश््याणि सन्तु ' इस प्रकार संकल्प पढ़कर छोड़ दे। तत्पश्चात्‌ सख्य हो दक्षिण

दिज्ञाकी ओर देखते हुए पिण्डोंके ऊपर पूर्वाग्र जलधारा गिरे और पदे --* ॐ अघोराः पितरः सन्तु।' इसके बाद हाथ जोड़ पूर्वाभिमुख

हो मूलर्मे कहे अनुसार आशी:-प्रार्थना करें।

३. इसके आद स्ववं शुककर सब पिण्डोंकों काकसे सुंघ ले और उठा दे। पिष्डोकि आधारभूत कुशोंकों तथा उल्मुक (जिससे

अङ्गार-्रमण कराया गया धा)-को अग्निमें डाल दे।

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