समय इस प्रकार कहे --' दिव्यलोक, अन्तरिक्षलोक
तथा भूमिलोकमें जो मेरे पितर और बान्धव
आदि सम्बन्धी प्रेत आदिके रूपर्मे रहते हों, वे
सब लोग इन मेरे दिये हुए पिण्डोकि प्रभावसे
मुक्ति-लाभ करें । प्रेतशिला तीन स्थानोंमें अत्यन्त
पावन मानी गयी है -गयाशीर्ष, प्रभासतीर्थं और
परेतकुण्ड । इनमें पिण्डदान करनेवाला पुरुष अपने
कुलका उद्धार कर देता है ॥ ११--१५॥
वसिष्ठेश्वको नमस्कार करके उनके आगे
पिण्डदान दे। गयानाभि, सुषुम्ना तथा महाको्ठीमें
भी पिण्डदान करे। भगवान् गदाधरके सामने
मुण्डपृष्ठपर देवीके समीप पिण्डदान करे । पहले
क्षेत्रपाल आदिसहित मुण्डपृष्ठको नमस्कार कर
लेना चाहिये। उनका पूजन करनेसे भयका नाश
होता है, विष और रोग आदिका कुप्रभाव भी दूर
हो जाता है । ब्रह्माजीको प्रणाम करनेसे मनुष्य
अपने कुलको ब्रह्मलोके पहुँचा देता है । सुभद्रा,
बलभद्र तथा भगवान् पुरुषोत्तमका पूजन करनेसे
मनुष्य सम्पूर्णं कापनाओंको प्राप्त करके अपने
कुलका उद्धार कर देता ओर अन्तर्मे स्वर्गलोकका
भागी होता है। भगवान् हषीकेशको नमस्कार
करके उनके आगे पिण्डदान देना चाहिये।
श्रीमाधवका पूजन करके मनुष्य विमानचारी
देवता होता है ॥ १६--२०॥
भगवती महालक्ष्मी, गौरी तथा सङ्गलमयी
सरस्वतीकी पूजा करके मनुष्य अपने पितरोंका
उद्धार करता, स्वयं भी स्वर्गलोके जाता और
वहाँ भोग भोगनेके पश्चात् इस लोकम आकर
शास्त्रोंका विचार करनेवाला पण्डित होता है।
फिर बारह आदित्योंका, अग्निका, रेवन्तका और
इन्द्रका पूजन करके मनुष्य रोग आदिसे छुटकारा
पा जाता है और अन्ते स्वर्गलोकका निवासी
होता है। ' श्रीकर्पर्दे विनायक' तथा कार्तिकेयका
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पूजन करनेसे मनुष्यको निर्विघ्नतापूर्वक सिद्धि
प्राप्त होती है। सोमनाथ, कालेश्वर, केदार, प्रपितामह,
सिद्धेश्वर, रुद्रेथर, रामेश्वर तथा ब्रह्मकेश्वर-
इन आठ गुप्त लिड्रोंका पूजन करनेसे मनुष्य
सब कुछ पा लेता है। यदि लक्ष्मीप्राप्तिकी
कामना हो तो भगवान् नारायण, वाराह, नरसिंहको
नमस्कार करे। ब्रह्मा, विष्णु तथा त्रिपुरनाशक
महेश्वरको भी प्रणाम करे। वे सब कामनाओंको
देनेवाले हैं॥ २१--२५॥
सीता, राम, गरुड तथा बामनका पूजन
करनेसे मानव अपनी सम्पूर्ण कामनाएँ प्राप्त कर
लेता है और पितरोंको ब्रह्मतोककी प्राप्ति करा
देता है। देवताओंसहित भगवान् श्रीआदि-गदाधरका
पूजन करनेसे मनुष्य तीनों ऋणोंसे मुक्त होकर
अपने सम्पूर्ण कुलको तार देता है। प्रेतशिला
देवरूपा होनेसे परम पवित्र है। गयामें वह शिला
देवमयी ही है। गयामें ऐसा कोई स्थान नहीं है,
जहाँ तीर्थ न हो। गयामें जिसके नामसे भी पिण्ड
दिया जाता है, उसे वह सनातन ब्रह्मे प्रतिष्ठित
कर देता है। फल्ग्वीश्वर, फल्गुचण्डी तथा
अङ्गारके्वरको प्रणाम करके श्राद्धकर्ता पुरुष
मतङ्गमुनिके स्थानम पिण्डदान दे। फिर भरतके
आश्रमपर भी पिण्ड दे। इसी प्रकार हंस-तीर्थ ओर
कोटि-तीर्थमे भी करना चाहिये । जहाँ पाण्डुशिला
नद है, यहाँ अग्निधारा तथा मधुखलवा तीर्थे
पिण्डदान करे। तत्पश्चात् इन्द्रेधर, किलकिलेश्वर
तथा वृद्धि-विनायककों प्रणाम करे; तदनन्तर
धेनुकारण्यमें पिण्डदान करे, धेनुपदमें गौको
नमस्कार करे। इससे वह अपने सम्पूर्ण पितरोंका
उद्धार कर देता है। फिर सरस्वती-तीर्थमें जाकर
पिण्ड दे। सायंकाल संध्योपासना करके सरस्वती
देवोको प्रणाम करे। ऐसा करनेवाला पुरुष तीनों
कालकी संध्योपासनामें तत्पर बेद-बेदाड्रोंका