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+ अध्याय १९५१५

२४

पिता-माता आदिका तर्पण करे! फिर इस प्रकार | सुखपूर्वक क्रीडा करते ओर अन्ते स्वर्गलोकको

कहे -' पिता, पितामह और प्रपितामह; माता,

पितामही और प्रपितापही तथा मातामह, प्रमातामह

और वृद्ध-प्रमातापह --इन सबको तथा अन्य

पितरोको भी उनके उद्धारके लिये मैं पिण्ड देता

हूँ। सोम, मङ्गल और बुधस्वरूप तथा बृहस्पति,

जाते है ॥ १७ -२४॥

तत्पश्चात्‌ महानदीमें स्थित परम उत्तम फल्गु-

तीर्थपर जाय । यह नाग, जनार्दन, कूप, वट और

उत्तर-मानससे भी उत्कृष्ट है। इसे " गयाका शिरोधाग

कहा गया है। गयाशिरको ही “फल्गु-तीर्थ' कहते

शुक्र, शनैश्चर, राहु और केतुरूप भगवान्‌ | हैं। यह मुण्डपृष्ठ और नग आदि तीर्थकी अपेक्षा

सूर्यको प्रणाम है।' उत्तर-मानस-तीर्थमें स्नान

करनेवाला पुरुष अपने समस्त कुलका उद्धार कर

देता है॥ १०--१६॥

सूर्यदेवको नमस्कार करके मनुष्य मौन-

भावसे दक्षिण-मानस-तीर्थको जाय और यह

भावना करे--'पैं पितरोंकी तृप्तिक लिये दक्षिण-

मानस-तीर्थमें स्तान करता हूँ। मैं गयामें इसी

उद्देश्यसे आया हूँ कि मेरे सम्पूर्ण पितर स्वर्गलोकको

चले जाय॑ं।' तदनन्तर श्राद्ध और पिण्डदान करके

भगवान्‌ सूर्यको प्रणाम करते हुए इस प्रकार

कहे -' सबका भरण-पोषण करनेवाले भगवान्‌

भानुको नमस्कार है। प्रभो! आप मेरे अध्युदयके

साधक हों। मैं आपका ध्यान करता हूँ। आप मेरे

सम्पूर्ण पितरोंकों भोग और मोक्ष देनेवाले हों।

कव्यवाट्‌ू, अनल, सोम, यम, अर्यमा, अग्निष्वात्त,

बर्हिषद तथा आज्यप नापवाले महाभाग पितृ-

देवता यहाँ पदार्पण करे । आपलोगोकि द्वारा

सुरक्षित जो मेरे पिता-माता, मातामह आदि पितर

हैं, उनको पिण्डदान करनेके उद्देश्यसे मैं इस

गयातीर्थमें आया हूँ।' मुण्डपृष्ठके उत्तर भागमें

देवताओं और ऋषियोंसे पूजित जो “कनखल'

नामक तीर्थ है, वह तीनों लोकोंमें विख्यात है।

सिद्ध पुरुषोंके लिये आनन्ददायक और पापियोंके

लिये भयंकर बड़े-बड़े नाग, जिनकी जीभ

लपलपाती रहती है, उस तीर्थकी प्रतिदिन रक्षा

करते हैं। वहाँ स्नान करके मनुष्य इस भूतलपर

सारसे भी सार वस्तु है। इसे “आभ्यन्तर-तीर्थ'

कहा गया है। जिसमें लक्ष्मी, कामधेनु गौ, जल

और पृथ्वी सभी फलदायक होते हैं तथा जिससे

दृष्टि रमणीय, मनोहर वस्तुं फलित होती हैं, वह

"फल्गु-तीर्थ' है। फल्गु-तीर्थं किसी हलके-

फुलके तीर्थके समान नहीं है । फल्गु -तीर्थमें स्नान

करके मनुष्य भगवान्‌ गदाधरका दर्शन करे तो

इससे पुण्यात्मा पुरुषोंको क्या नहीं प्राप्त होता?

भूतलपर समुद्र-पर्यनत जितने भी तीर्थ और

सरोवर हैं, वे सब प्रतिदिन एक बार फल्गु-

तीर्थमें जाया करते हैं। जो तीर्थराज फल्गु-तीर्थमें

श्रद्धाके साथ स्नान करता है, उसका वह स्नान

पितरोंको ब्रह्मलोककी प्राति करानेवाला तथा

अपने लिये भोग और मोक्षकी सिद्धि करनेवाला

होता है॥ २५--३०॥

श्राद्धकर्ता पुरुष स्नानके पश्चात्‌ भगवान्‌

ब्रह्माजीको प्रणाम करे। (उस समय इस प्रकार

कहे - ) 'कलियुगमें सब लोग महेश्वरके उपासक

हैं; किंतु इस गया-तीर्थमें भगवान्‌ गदाधर उपास्यदेव

हैं। यहाँ लिङ्गस्वरूप ब्रह्माजीका निवास है, उन्हीं

महे श्वरको मैं नमस्कार करता हूँ। भगवान्‌ गदाधर

(वासुदेव), बलराम (संकर्षण), प्रद्युम्न, अनिरुद्ध,

नारायण, ब्रह्मा, विष्णु, नृसिंह तथा वराह आदिको

मैं प्रणाम करता हूँ।' तदनन्तर श्रीगदाधरका दर्शन

करके मनुष्य अपनी सौ पीढ़ियोंका उद्धार कर

देता है। दूसरे दिन धर्मरिण्य-तीर्थका दर्शन करे ।

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