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* अध्याय ११४०

8 ह ।

२४९

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उस तीर्थमें विराजमान हैं २२-२५॥

पूर्वकालमें "गद" नामसे प्रसिद्ध एक भयंकर

असुर था। उसे श्रीविष्णुने मारा और उसको

इड्डियोंसे विश्वकर्मने गदाका निर्माण किया। वही

*आदि-गदा' है। उस आदि-गदाके द्वारा भगवान्‌

गदाधरने 'हेति' आदि राक्षसोंका वध किया था,

इसलिये वे “आदि-गदाधर' कहलाये। पूर्वोक्त

देवमयी शिलापर आदि-गदाधरके स्थित होनेपर

गयासुर स्थिर हो गया; तब ब्रह्माजीने पूर्णाहुति

दी। तदनन्तर गयासुरने देवताओंसे कहा--

*किसलिये मेरे साथ वञ्चना की गयी है? क्या मैं

भगवान्‌ विष्णुके कहनेमात्रसे स्थिर नहीं हो

सकता था? देवताओ! यदि आपने मुझे शिला

आदिके द्वारा दबा रखा है, तो आपको मुझे

वरदान देना चाहिये ' ॥ २६-३० ॥

देवता बोले--' दैत्यप्रवर ! तीर्थ-निर्माणके लिये

हमने तुम्हारे शरीरकों स्थिर किया है; अतः यह

तुम्हारा क्षेत्र भगवान्‌ विष्णु, शिव तथा ब्रह्माजौका

निवास-स्थान होगा। सब तीर्थोंसे बढ़कर इसकी

प्रसिद्धि होगी तथा पितर आदिके लिये यह क्षेत्र

ब्रह्मलोक प्रदान करनेवाला होगा।'--यों कहकर

सब देवता वहीं रहने लगे। देवियों और तीर्थ

आदिने भी उसे अपना निवास-स्थान बनाया।

ब्रह्माजीने यज्ञ पूर्ण करके उस समय ऋत्विजोंको

दक्षिणाएँ दीं। पाँच कोसका गया-क्षेत्र और

पचपन गाँव अर्पित किये। यही नहीं, उन्होंने

सोनेके अनेक पर्वत बनाकर दिये। दूध और

मधुकी धारा बहानेवाली नदियाँ समर्पित कीं ।

दही और घीके सरोवर प्रदान किये। अन्न

आदिके बहुत-से पहाड़, कामधेनु गाय, कल्पवृक्ष

तथा सोने-चाँदीके घर भी दिये। भगवान्‌ ब्रह्माने

ये सब वस्तु देते समय ब्राह्मणोंसे कहा--

“विप्रवरो ! अब तुम मेरी अपेक्षा अल्प-शक्ति

रखनेवाले अन्य व्यक्तियोंसे कभी याचना न

करना।' यों कहकर उन्होंने वे सब वस्तुं उन्हें

अर्पित कर दीं॥३१--३५॥

तत्पश्चात्‌ धर्मने यज्ञ किया। उस यज्ञमें लोभवश

धन आदिका दान लेकर जब वे ब्राह्मण पुनः

गयामें स्थित हुए, तब ब्रह्माजीने उन्हें शाप

दिया--'अब तुमलोग विद्याविहीन और लोभी

हो जाओगे। इन नदियोंमें अब दूध आदिका

अभाव हो जायगा और ये सुवर्ण-शैल भी पत्थर

मात्र रह जायँगे।' तब ब्राह्मणो ब्रह्माजीसे कहा-

* भगवन्‌! आपके शापसे हमारा सब कुछ नष्ट हो

गया। अब हमारी जौविकाके लिये कृपा कीजिये।'

यह सुनकर वे ब्राह्मणोंसे बोले--' अब इस तीर्थसे

ही तुम्हारी जीविका चलेगी। जबतक सूर्य और

चन्द्रमा रहेंगे, तबतक इसी वृत्तिसे तुम जीवननिर्वाह

करोगे। जो लोग गया-तीर्थमें आयेंगे, वे तुम्हारी

पूजा करेंगे। जो हव्य, कव्य, धन और श्राद्ध

आदिके द्वारा तुम्हारा सत्कार करेंगे, उनकी सौ

पीदियोकि पितर नरकसे स्वर्ग चले जायँगे

और स्वर्गमें ही रहनेवाले पितर परमपदको प्राप्त

होंगे! ॥ ३६--४० ॥

महाराज गयने भी ठस कषेत्रम बहुत अन्न

और दक्षिणासे सम्पन्न यज्ञ किया था। उन्हीकि

नामसे गयापुरौकौ प्रसिद्धि हुई। पाण्डर्वोनि भी

गयामें आकर श्रीहरिकौ आराधना कौ थी ॥ ४९॥

इस रकार आदि आएनेय महापएुराणमे * यया- माहात्म्य - कणन “ नामक

एक सौ चौदह्वां अध्याय पूरा हुआ॥ ११४॥

(~

362 अग्नि पुराण ९

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