देवताओंका पूजन करें। इनके मन्त्र पहले बताये | ॐ हीं कामिन्यै नपः।' “ॐ हुं काममालिन्य
गये हैं। '3& सुं सुभगायै नमः '--इससे सुभगाका, | नम: ।'-- इन मन्त्रोंसे गौरीकी प्रतिष्ठा, पूजा और जप
“ॐ हीं ललितायै नमः! से ललिताका पूजन करे।। करनेसे उपासक सब कुछ पा लेता है*॥ १६-१७॥
इस प्रकार आदि आरनेय महापुराणमें 'यौरी-प्रतिष्ा-किधिका वर्णन” नामक
अटाननेवां अध्याय पूरा हुआ॥# ९८ #
निन्यांनबेवाँ अध्याय
सूर्यदेवकी स्थापनाकी विधि
भगवान् शिव बोले--स्कन्द! अब मैं| करे। तदनन्तर सर्वतोमुखी शक्तिके साथ विधिवत्
सूर्यदेवकी प्रतिष्ठाका वर्णन करूँगा। पूर्ववत् मण्डप- | स्थापना करके, गुरु सूर्य-सम्बन्धी मन्त्र बोलते हुए
निर्माण और स्नान आदि कार्यका सम्पादन | शक्त्यन्त सूर्यका विधिवत् स्थापन करे॥ ३-४॥
करके, पूर्वोक्त विधिसे विद्या तथा साङ्ग सूर्यदेवका | श्रीसूर्यदेवका स्वाम्यन्त अथवा पादान्त नाम
आसन-शय्यामें न्यास करके त्रितत््वका, ईश्वरका | रखे। (यथा विक्रमादित्य-स्वामी अथवा
तथा आकाशादि पाँच भूतोंका न्यास करे॥ १-२॥ | रामादित्यपाद इत्यादि) सूर्यके मन्त्र पहले बताये
पर्ववत् शुद्धि आदि करके पिण्डीका शोधन | गये हैं, उन्हींका स्थापनकालमें भी साक्षात्कार
करे। फिर सदेशपद-पर्यन्त तत्त्व-पञ्ञकका न्यास | (प्रयोग) करना चाहिये॥५॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुरणमें “सूर्व- प्रतिष्टा -विधिका वर्णन” नामक
विन्यानकेवां अध्याय पूरा हुआ॥ ९९ #
न~
सौवाँ अध्याय
द्वारप्रतिष्ठा-विधि
भगवान् शंकर कहते हैं--स्कन्द! अब मैं | अग्रभागोंमें आत्मतत्व, विद्यातत्व और शिवतत्त्वका
द्वारगत प्रतिष्ठाकी विधिका वर्णन करूँगा। द्वारक | न्यास करके संनिरोधिनी -मुद्राद्वारा उनका निरोध
अङ्गभूत उपकरणोका कसैले जल आदिसे संस्कार | करे। फिर तदनुरूप होम और जप करके, दारके
करके उन्हें शय्यापर रखे । द्वारके मूल, मध्य ओर | अधोभागे अनन्त देवताके मन्त्रसे बास्तु-देवताकी
* सोमशम्भुकी 'कर्मकाण्ड-क्रमावली 'में इव मन्तरोकि स्वरूप और बीज कुछ भिन्न रूपमे मिलते है । अतः उन्हें अधिकल रूपमें
यहाँ उद्धृत किया जाता हैं --3& आं आधारशक्तये नम: | ॐ ईं कन्दराय नम: । ॐ ॐ नालाय नम: | ॐ ऋ धर्माय नमः। ॐ ॐ ज्ञानाय
नमः। ॐ लृं वैराग्याय नमः। ॐ लृं ऐश्वर्याय नम: । ॐ ऋ अधांय नमः ॐ ऋ अज्ञानाय नम-। ॐ लृं अयैराग्छय नमः। ॐ> घुं
अनैश्वर्याय नमः। ॐ अः ऊर्ध्वच्छदनाय नम:। ॐ हां पद्य नमः। ॐ> हं केस्तोभ्यों नमः । ॐ हं कर्णिकाये नमः। ॐ> हं पुष्करेभ्यो कमः ।
35 हं प्रञ्च्यै नमः। ॐ हाँ ज्ञानवत्ये नमः । ॐ हूँ क्रियायै तमः । ॐ> हल वाम्दयै नमः। ॐ हलू वागी शर्व नम: | 35 हीं व्वालिन्यै नमः।
ॐ> हो ज्येष्ठायै नम: । ॐ> हाँ रौद्यै नमः सति सर्वशक्तयः । ॐ> गां गौर्यासिताय कमः । ॐ> गो गौरीमूर्तवे नमः। %ॐ> हीं सः महागौरि ुदरदधिते
स्वाहा । - इति मूलमन्त्रः । गां इदयाय मम: । गी शिरसे स्वाह । गुं शिखायै वषर् । # कवचाय हुम् । गीं तरेभ्यो वौषट् । गः अस्तकय फट् ।
ॐ> सी ज्ञानशक्तये जम: | ॐ सूं क्रियाशक्तये नम: । लोकपालमन्त्रास्तु पूर्वोक्ताः । पे सै सुभगायै नमः । ॐ स्वै ललितायै नमः। ॐ> र्हं
कामिन्यै नमः। ॐ स्हौ काममालिन्यै नमः। इत्येता गौरीसमानसख्य: ।