कृष्णपक्षकी अष्टमीको आधी रातके समय चार
भुजाधारी भगवान् श्रीहरि प्रकट हुए। उस समय
देवकी और वसुदेवने उनका स्तवन किया। फिर
वे दो बाँहोंवाले नन्हें-ले बालक बन गये।
वसुदेवने कंसके भयसे अपने शिशुकों यशोदाकी
शय्यापर पहुँचा दिया और यशोदाकी नवजात
बालिकाकों देवकीकी शय्यापर लाकर सुला
दिया। बच्येके रोनेकी आवाज सुनकर कंस आ
पहुँचा और देवकीके मना करनेपर भी उसने उस
बालिकाको उठाकर शिलापर पटक दिया।
उसने आकाशवाणीसे सुन रखा था कि देवकीके
आठवें गर्भसे मेरी मृत्यु होगी । इसीलिये उसने
देवकीके उत्पन्न हुए सभी शिशुओंको मार डाला
था॥ १--९॥
कंसके द्वारा शिलापर पटकी हुई वह बालिका
आकाशम उड़ गयी और बहींसे इस प्रकार
बोली--'कंस ! मुझे पटकनेसे तुम्हारा क्या लाभ
हुआ? जिनके हाथसे तुम्हारा वध होगा वे
देवताओंके सर्वस्वभूत भगवान् तो इस पृथ्वीका
भार उतारनेके लिये अवतार ले चुके '॥ १०-११॥
ऐसा कहकर वह चली गयी । उसीने देवताओंकी
प्रार्थासे शुम्भ आदि दैत्योंका वध किया। तब
इन्द्रने इस प्रकार स्तुति कौ-“जो आर्या, दुर्गा,
वेदगर्भा, अम्बिका, भद्रकाली, भद्रा, क्षेप्या, क्षेमकरी
तथा नैकबाहु आदि नामोँसे प्रसिद्ध हैं, उन
जगदम्बाको मैं नमस्कार करता हूँ।” जो तीनों
समय इन नामोंका पाठ करता है, उसकी सब
कामनाएँ पूर्ण होती हैं। उधर कंसने भी (बालिकाकी
बात सुनकर) नवजात शिशुओंका वध करनेके
लिये पूतना आदिको सब ओर भेजा। कंस
आदिसे डरे हुए वसुदेवने अपने दोनों पुत्रोंकी
रक्षाके लिये उन्हें गोकुलमें यशोदापति नन्दजीको
सौंप दिया था। वहाँ बलराम और श्रीकृष्ण-
दोनों भाई गौओं तथा ग्वालबालोंके साथ विचरा
करते थे। यद्यपि वे सम्पूर्ण जगत्के पालक थे, तो
भी व्रजे गोपालक बनकर रहे। एक बार
श्रीकृष्णके ऊधमसे तंग आकर मैया यशोदाने
उन्हें रस्सीसे ऊखलमें बाँध दिया। वे ऊखल
घसीटते हुए दो अर्जुन-वृक्षोंक बीचसे निकले।
इससे वे दोनों वृक्ष टूटकर गिर पड़े। एक दिन
श्रीकृष्ण एक छकड़ेके नीचे सो रहे थे। वे
माताका स्तनपान करनेकी इच्छासे अपने पैर
फेंक-फेंककर रोने लगे। उनके पैरका हलका-सा
आघात लगते ही छकड़ा उलट गया॥ १२--१७॥
पूतना अपना स्तने पिलाकर श्रीकृष्णको
मारनेके लिये उद्यत थी; किंतु श्रीकृष्णने ही
उसका काम तमाम कर दिया। उन्होंने वृन्दावने
जानेके पश्चात् कालियनागको परास्त किया और
उसे यमुनाके कुण्डसे निकालकर समुद्रमें भेज
दिया। बलरामजीके साथ जा, गदहेका रूप धारण
करनेवाले धेनुकासुरकों मारकर, उन्होंने तालवनको
क्षेमयुक्त स्थान बना दिया तथा वृषभरूपधारी
अरिशसुर और अश्वरूपधारी केशीको मार डाला।
फिर श्रीकृष्णने इन्द्रयागके उत्सवको बंद कराया
और उसके स्थानमें गिरिराज गोवर्धनकी पूजा
प्रचलित को। इससे कुपित हो इन्द्रने जो वर्षा
आरम्भ की, उसका निवारण श्रीकृष्णने गोवर्धन
पर्वतको धारण करके किया। अन्ते महेन्द्रने
आकर उनके चरणोंमें मस्तक झुकाया और उन्हें
गोविन्द ' की पदवी दी। फिर अपने पुत्र अर्जुनको
१. तैकबाहुका अर्थ है--अनेक बॉहॉचाली। इससे द्विभुजा, चतुर्भुजा, अष्टभुजा तथा अष्टादशभुजा आदि सभी देवियोंका ग्रहण हो
जाता है।
२. आर्या दुर्गा वेद गर्भा अम्बिका भद्रकाल्यपि । भद्रा क्षेम्या क्षेमकरी नैकबराहुतमासि ताम्॥
यः पठेन्नाम सर्वान् कामान् स चाप्नुयात् ॥
(अग्निर १२। १२-१३)