"ॐ हूं शान्त्यतीतकलापाशाय हूं फट्।' इस
मन्त्रसे प्रताड़न करे। संहारमुद्राद्रारा उक्त कलापाशको
लेकर सूत्रके पस्तकपर रखे और उसकी पूजा
करे। तदनन्तर उसके सांनिध्यके लिये पूर्ववत्
तीन आहुतियाँ दे। शान्त्यतीतकलाका अपना बीज
है--' हूं '। दो तत्त्व, दो अक्षर, बीज, नाड़ी, क,
ख--ये दो अक्षर, दो गुण, दो मन्त्र, कमलमें
विराजमान एकमात्र कारणभूत ईश्वर, बारह पद,
सात लोक और एक विषय--इन सवका कृष्णवर्णा
शान्तिकलाके भीतर चिन्तनं करें। तत्पश्चात्
पूर्ववत् ताडन करके सूत्रके मुखभांगमें इन सबका
नियोजन करे । इसके बाद सांनिध्यके लिये अपने
बीज-मन्त्रद्वारा तीन आहुतियाँ दे । शान्तिकलाका
अपना बीज है--'हूं हूं ॥ १९--२७॥
सात तत्त्व, इक्कीस पद, छः वर्ण. एक शम्बर,
पचीस लोक, तीन गुण, एक विषय, रुद्ररूप
कारणतत्त्व, वीज, नाड़ी और क, ख~ये दो
कलाएँ--इन सबका अत्यन्त रक्तवर्णवाली विद्याकलामें
अन्तर्भाव करके, आवाहन और संयोजनपूर्वक
पूर्वोक्त सूत्रके इदयभागमें स्थापितं करके अपने
मन्त्रसे पूजन करे ओर इन सबकी संनिधिके लिये
पूर्ववत् तीन आहुतियाँ दे । आहुतिके लिये बीज-
मन्त्र इस प्रकार है-'हूं हूं हूं ।' चौबीस तत्त्व,
पचीस वर्णं, बीज, नाडी, क, ख -ये दो कलां
बारईस पद, साठ लोक, साठ कला, चार गुण,
तीन मन्त्र, एक विषय तथा कारणरूप श्रीहरिका
शुक्लर्णा प्रतिष्ठा-कला्मे अन्तर्भाव करके ताडन
आदि करे। फिर इन सबका पूर्वोक्त सूत्रके
जाभिभागमे संयोजन करके संनिधिकरणके लिये
तीन आहुतियाँ दे। उसके लिये बौज-मन्त्र इस
प्रकार है--'हूं हूं हूं हूं।' एक सौ आठ भुवन या
लोक, अट्ठाईस पद, बीज, नाडी और समोरकी
दो-दो संख्या, दो इन्द्रिया, एक वर्ण, एक तत्त्व,
एक विषय, पाँच गुण, कारणरूप कमलासन ब्रह्मा
अन्तर्भाव करके ताडन करे । इन्हें ग्रहण करके
सूत्रके चरणभागमें स्थापित करनेके पश्चात् इनकी
पूजा करे और इनके सांनिध्यके लिये अग्निमें
तीन आहुतियाँ दे। आहुतिके लिये बीज-मन्त्र यों
है-' हूं हूं हूं हूं हूं'॥ २८--३५॥
इस प्रकार सूत्रगत पाँच कलाओंको लेकर
शिष्यके शरीरमें उनका संयोजन करे। सबीजादीक्षामें
समयाचार-पाशसे, देहारम्भक धर्मसे, मन्त्रसिद्धिके
फलसे तथा इष्टपूर्तादि धर्मसे भी भिन चैतन्यरोधक
सुक्ष्म प्रबन्धकका कलाओकि भीतर चिन्तन करे।
इसी क्रमसे अपने मन्त्रद्वारा तीन-तीन आहुतियाँ
देते हुए तर्पण और दीपन करे । ' ॐ हूँ शान्त्यतीत-
कलापाशाय स्वाहा ।' इत्यादि मन्तरसे तर्पण करे ।
“ॐ हूं हूं शान्त्यतीतकलापाशाय हूं हूं फट् ।'--
इत्यादि मन्त्रसे दीपन करे । पूर्वोक्त सूत्रको व्याप्ति-
बोधके लिये पाँच कला- स्थानि सुरक्षापूर्वक
रखकर उसपर कुङ्कुमे आदिके द्वारा साङ्ग-शिवका
पुजन करे। फिर कला-मन्त्रोंके अन्तमें "हु फट्।-
इन पदोंकों जोड़कर उनका उच्चारण करते हुए
क्रमशः पाशोंका भेदन कर्के नमस्कारान्त कलामन्ह्रोंद्वारा
ही उनके भीतर प्रवेश करे। साथ ही उन कलाओंका
ग्रहण एवं बन्धन भी करें।'3» हूं हूं हूं
शान्त्यतीतकलां गृह्लामि बध्नामि च।'--इत्यादि
मन्त्रौद्रारा कलाओंके ग्रहण एवं बन्धन आदिका
प्रयोग होता है। पाश आदिका वशीकरण (या
भेदन), ग्रहण और बन्धन तथा पुरुषके प्रति
सम्पूर्ण व्यापारोका निषेध - यह बारंबार प्रत्येक
कलाके लिये आवश्यक कर्तव्य है ॥ ३६--४४॥
तदनन्तर शिष्यको बिठाकर, पूर्वोक्त सूत्रको
उसके कंधेसे लेकर उसके हाथमे दे और भूले-
भटके पापोका नाश करनेके लिये सौ बार मूल-
मन््रसे हवन करे । अस्त्र-सप्बन्धी मन्त्रके सम्पुटमें
पुरुषके और प्रणवके सम्पुटमें स्त्रीके सूत्रको
रखकर, उसे हृदय-मन्त्रसे सम्पुटित करके उसी
और चार शम्बर--इन सबका पीतवर्णा निवृत्तिकलामें | मन्तरसे उसकी पूजा करे। साङ्ग-शिवसे सूत्रको