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गा

हाथ जोड़कर भगवान्‌ इस प्रकार प्रार्थना

करे--' परमेश्वर! आप ही समस्त प्राणियोंकी गति

हैं। आप ही चराचर जगत्‌की स्थितिके हेतुभूत

(अथवा लयके आश्रय) हैं। आप सम्पूर्ण भूतोंके

भीतर विचरते हुए उनके साक्षीरूपसे अवस्थित

हैं। मन, वाणी और क्रियाद्वारा आपके सिवा

दूसरी कोई मेरी गति नहीं है। महेश्वर! मैंने

प्रतिदिन आपके पूजनमें जो मन्त्रहीन, क्रियाहीन,

द्रब्यहीन तथा जप, होम और अर्चनसे हीन कर्म

किया है, जो आवश्यक कर्म नहीं किया है तथा

जो शुद्ध वाक्यसे रहित कर्म किया है, वह सब

आप पूर्ण करें। परमेश्वर! आप परम पवित्र है ।

आपको अर्पित किया हुआ यह पवित्रक समस्त

पापोंका नाश करनेवाला है। आपने सर्वत्र व्याप्त

होकर इस समस्त चराचर जगतूको पवित्र कर

रखा है। देव! मैने व्याकुलताके कारण अथवा

अङ्गवैकल्य-दोषके कारण जिस व्रतको खण्डित

कर दिया है, वह सब आपको आज्ञारूप सूत्रम

गुंथकर्‌ एक --अखण्ड हो जाय" ॥ १५--२२ ६ ॥

तत्पश्चात्‌ जप निवेदन करके, उपासक भक्तिपूर्वक

भगवानूकी स्तुति करे और उन्हें नमस्कार करके,

गुरुकौ आज्ञाके अनुसार चार मास, तीन मास,

तीन दिन अथवा एक दिनके लिये ही नियम

ग्रहण करे। भगवान्‌ शिवको प्रणाम करके उनसे

त्रुटियोंके लिये क्षमा माँगकर त्रती पुरुष कुण्डके

समीप जाय ओर अग्निम विराजमान भगवान्‌

शिवके लिये भी चार पवित्रक अर्पित करके

पुष्प, धूप ओर अक्षत आदिसे उनकी पूजा करे।

इसके बाद रुद्र आदिको अन्तर्बलि एवं पवित्रक

निवेदन करे ॥ २३--२६॥

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दे। मन्दस्वस्में मन्त्र बोलकर पूर्णाहुति करके

अग्निमें विराजमान शिवका विसर्जन करे। फिर

व्याहति-होम करके, निष्ुराद्वार अग्निको निरुद्ध

करे और अग्नि आदिको निम्नोक्त मन्त्रोंसे चार

आहुति दे। तत्पश्चात्‌ दिक्‍्पालोंको पवित्र एवं

बाह्य बलि अर्पित करे। इसके बाद सिद्धान्त-

ग्रन्थपर उसके बराबरका पवित्रक अर्पित करे।

पूर्वोक्त व्याहति-होमके मन्त्र इस प्रकार हैं--

"ॐ हां भूः स्वाहा।' ' ॐ हां भुवः स्वाहा \'

"ॐ हां स्वः स्वाहा।' "ॐ हां भूर्भुवः स्वः

स्वाहा ।' ॥ २७--३१॥

इस प्रकार व्याहतियोद्राा होम करके अग्नि

आदिके लिये चार आहुतियाँ देकर दूसरा कार्य

करे । उन चार आहुतियोंके मन्त्र इस प्रकार हैं--

* ॐ हां अग्नये स्वाहा ।' ' ॐ हां सोमाय स्वाहा।'

"ॐ हां अग्नीषोमाभ्यां स्वाहा ।' ' ॐ हां अग्नये

स्विष्टकृते स्वाहा ।' फिर गुरुकी शिवके समान

वस्त्राभूषण आदि विस्तृत सामग्रीसे पूजा करे।

जिसके ऊपर गुरुदेव पूर्णरूपसे संतुष्ट होते हैं, उस

साधकका सारा वार्षिक कंर्मकाण्ड आदि सफल

हो जाता है-ऐसा परमेश्वका कथन है। इस

प्रकार गुरुका पूजन करके उन्हें हृदयतक लटकता

हुआ पवित्रक धारण करावे और ब्राह्मण आदिको

भोजन कराकर भक्तिपूर्वक उन्हें वस्त्र आदि दे।

उस समय यह प्रार्थना करे कि "देवेश्वर भगवान्‌

सदाशिव इस दानसे मुझपर प्रसन्‍न हों।' फिर

प्रातःकाल भक्तिपूर्वक स्नान आदि करके भगवान्‌

शंकरके श्रीविग्रहसे पवित्रकोंकों समेट ले और

आठ फूलोंसे उनकी पूजा करके उनका विसर्जन

कर दे। फिर पहलेकी तरह विस्तारपूर्वक

तत्पश्चात्‌ पूजा-मण्डपमें प्रवेश करके भगवान्‌ | नित्य-नैमित्तिक पूजन करके पवित्रक चढ़ाकर

शिवका स्तवन करते हुए प्रणामपूर्वक क्षमा-

प्रार्थना करे । प्रायश्चित्त-होम करके खीरकी आहुति

प्रणाम करनेके पश्चात्‌ अग्निम शिवका पूजन

करे ॥ ३२--३८ ॥

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