र्द
रेचक प्राणायामके द्वारा अमृतीकरणकी क्रिया
सम्पादित करते हुए शिवान्त मूल-मन्त्रका उच्चारण
एवं जप करके उसे भगवान् शिवको समर्पित
करे। जप, स्तुति एवं प्रणाम करके भगवान्
शंकरसे अपनी त्रुटियोंके लिये क्षमा-प्रार्थना करे ।
तत्पश्चात् चरुके तृतीय अंशका होम करे। उसे
शिवस्वरूप अग्निको, दिग्वासियोंको, दिशाओंके
अधिपतियोंको, भूतगर्णोको, मातृगर्णोको, एकादश
रुद्रोंको तथा क्षेत्रपाल आदिको उनके नाममन्त्रके
साथ “नमः स्वाहा" बोलकर आहुतिके रूपमे
अर्पित करे । इसके बाद इन सबका चतुर्थ्यन्त नाम
बोलकर "अयं बलिः * कहते हुए बलि समर्पित
करे! पूर्वादि दिशाओमिं दिग्गजों आदिके साथ
दिक्पार्लोको, क्षेत्रपालको तथा अग्निको भी बलि
समर्पित करनी चाहिये । बलिके पश्चात् आचमन
मन्त्रोंद्वारा उन्हें अभिमन्त्रित करे। फिर प्रणवमन्त्र
अथवा मूल-मन्त्रसे षडङ्गन्यास करके “नमः
"हुं", एवं "फट्" का उच्चारण करके, उनमें
क्रमशः इदय, कवच एवं अस्त्रकी योजना
करे ॥ ६१--६४॥
यह सब करके उन पवित्रकोको सूत्रोंसे
आवेष्टित करे । फिर “नम: ', ' स्वाहा ', ' वषट् ',
"हुं", " वौषट्", तथा "फट् ' इन अङ्ग -सम्बन्धी
मर्त्रदरारा उन सबका पूजन करके उनकी रक्षाके
लिये भक्तिभावसे नम्र हो, उन्हें जगदीश्वर शिवको
समर्पित करे। इसके बाद पुष्य, धूप आदिसे
पूजिते सिद्धान्त-ग्रन्थपर पवित्रकं अर्पित करके
करके विधिच्छिद्रपूरक * होम करे । फिर पूर्णाहुति | गुरुके चरणोकि समीप जाकर उन्हें भक्तिपूर्वकं
और व्याहति-होम करके अग्निदेवको अवरुद्ध | पवित्रक दे। फिर वहसि बाहर आकर आचमन
करे ॥ ५६--६०॥
करे और गोबरसे लिपे-पुते मण्डलत्रये
तदनन्तर ॐ अग्नये स्वाहा ।' ' ॐ सोमाय | क्रमशः पञ्चगव्य, चरु एवं दन्तधावनका पूजन
स्वाहा ।' “ॐ अग्नीषोमाभ्यां स्वाहा ।' “ ॐ | करे ॥ ६५--६७॥
अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा ।'-इन चार मन्त्रोसे | तदनन्तर भलीभौति आचमन करके मन्त्रसे
चार आहुतियाँ देकर भावी कार्यकी योजना करे । | आवृत एवं सुरक्षित साधक रात्रिम संगीतकी व्यवस्था
अग्निकुण्ड पूजित हुए आराध्यदेव भगवान् | करके जागरण करे। आधी रातके बाद भोग-
शिवको पूजामण्डलमें पूजित कलशस्थ शिवमें | सामग्रीकी इच्छा रखनेवाला पुरुष मन-ही-मन भगवान्
नाडीसंधानरूप विधिसे संयोजित करे। फिर | शंकरका स्मरण करता हुआ कुशकी चटाईपर
बाँस आदिके पात्रमें 'फट्” और “नमः” के | सोये। मोक्षकी इच्छा रखनेवाला पुरुष भी इसी
उच्चारणपूर्वक अस्त्रन्यास और हदयन्यास | प्रकार जागरण करके ठपवासपूर्वकं एकाग्रचित्त हो
करके उसमें सब पवित्रकोंकों रख दे। इसके | केवल भस्मकी शय्यापर सोवे ॥ ६८-६९॥
इस प्रकार आदि आग्नेव महापुराणमें “पवित्राधिवासनकी विधिका वर्णन” नामक
अठहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ७८ #
जननि ==
* विधिके पालन या सम्पादनमें जो त्रुटि रह गयौ हो. उसकी पूर्ति करनेबाला।