सौरभेयि! यह ग्रास ग्रहण करो और मुझे
मनोवाज्छित वस्तु दो। कपिले! ब्रह्मर्षिं वसिष्ट
तथा बुद्धिमान् विश्वामित्रे भी तुम्हारी वन्दना की
है। मैने जो दुष्कर्म किया हो, मेरा वह सारा पाप
तुम हर लो। गौएँ सदा मेरे आगे रहें, गौएँ मेरे
पीछे भी रहें, गौएँ मेरे इृदयमें निवास करें और
मैं सदा गौओंके बीच निवास करूँ। गोमात: ! मेरे
दिये हुए इस ग्रासको ग्रहण करो।'
गोमाताके पास इस प्रकार बारंबार प्रार्थना
करनेवाला पुरुष निर्मल (पापरहित) एवं शिव-
स्वरूप हो जाता है। विद्या पढ़नेवाले मनुष्यको
चाहिये कि प्रतिदिन अपने विद्या-ग्रन्थोंका पूजन
करके गुरुके चरणोंमें प्रणाम करे। गृहस्थ पुरुष
नित्य मध्याहकालमें स्नान करके अष्टपुष्पिका
(आठ फूलोंवाली) पूजाकी विधिसे भगवान्
शिवका पूजन करे। योगपीठ, उसपर स्थापित
शिवकी मूर्ति तथा भगवान् शिवके जानु, पैर,
हाथ, उर, सिर, वाक्, दृष्टि और बुद्धि--इन आठ
अङ्गोकी पूजा ही “अष्टपुष्पिका पूजा' कहलाती है
(आठ अङ्ग ही आठ फूल हैं)। मध्याहकालमें
सुन्दर रीतिसे लिपे-पुते हुए रसोईघरमें पका-
पकाया भोजन ले आवे। फिर --
"त्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योमक्षीय माउमृतात्॥' वौषट्॥।
(शु० यजु० ३।६०)
इस प्रकार अन्तमें 'वौषट्' पदसे युक्त मृत्युझ्य-
मन्त्रका सात बार जप करके कुशयुक्त शङ्खे रखे
हुए जलकी बूँदोंसे उस अननको सींचे। तत्पश्चात्
सारी रसोईसे अग्राशन निकालकर भगवान् शिवको
निवेदन करें॥ १-९ ॥
इसके बाद आधे अनको चुल्लिका-होमका
कार्य सम्पन्न करनेके लिये रखे। विधिपूर्वक
चूल्हेकी शुद्धि करके उसकी आगमें पूरक
प्राणायामपूर्वक एक आहुति दे। फिर नाभिगत
अग्नि --जठरानलके उद्देश्यसे एक आहुति देकर
रेचक प्राणायामपूर्वक भीतरसे निकलती हुई वायुके
साथ अग्निबीज (रं)-को लेकर क्रमशः “'क!'
आदि अक्षरोंके उच्चारणस्थान कण्ठ आदिके
मार्गसे बाहर करके “तुम शिवस्वरूप अग्नि हो!
ऐसा चिन्तन करते हुए उसे चूल्हेकी आगमें
भावनाद्वारा समाविष्ट कर दे। इसके बाद चूल्हेकी
पूर्वांदि दिशाओंमें " ॐ हां अग्नये नमः। ॐ हां
सोमाय नमः। ॐ हां सूर्याय नमः। ॐ हां
बृहस्पतये नमः। ॐ हां प्रजापतये नमः। ॐ हां
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। ॐ हां सर्वविश्चेभ्यो नपः।
ॐ हां अग्नये स्विष्टकृते नमः।'-इन आठ
मोदाय अग्नि आदि आठ देवताओंकी पूजा के ।
फिर इन मन्त्रोंके अन्ते स्वाहा ' पद जोड़कर एक-
एक आहूति दे और अपराधेकि लिये क्षमा माँगकर
उन सबका विसर्जन कर दे॥ १०--१४॥
चूल्हेके दाहिने बगलमे ‹ धर्माय नमः।' इस
मन्त्रसे धर्मकौ तथा बायें बगलमे " अधर्माय
नमः।' इस मन्त्रसे अधर्मकी पूजा करे। फिर
कांजी आदि रखनेके जो पात्र हों, उनमें तथा
जलके आश्रयभूत घट आदिमे रसपरिवर्तमानाय
वरुणाय नमः।' इस मन्त्रसे वरुणकी पूजा करे।
रसोईघरके द्वारपर ' विघ्नराजाय नमः।' से
विघ्नराजकी तथा ' सुभगायै नमः।' से चक्की
सुभगाकी पूजा करे ॥ १५-१६॥
ओखलीमें * ॐ रौद्रिके गिरिके नमः।' इस
मन्त्रसे रौद्रिका तथा गिरिकाकी पूजा करनी
चाहिये । मूसलमें ' बलप्रियायायुधाय नमः।' इस
मन्त्रसे बलभद्रजीके आयुधका पूजन करे । सु
भी उक्त दो देवियों (रद्रिका ओर गिरिका)-
शय्यारमे कामदेवकी तथा मझले खम्भेमें स्कन्दकी
पूजा करे। बेटा स्कन्द ! तत्पश्चात् व्रतका पालन