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मैरे अपराधको क्षमा करें'--ऐसा कहकर हदय-

मन्त्रसे पूरक प्राणायामके द्वारा उन तेजस्वी

परिधियोंको बड़ी श्रद्धाके साथ अपने हृदयकमले

स्थापित करे ॥ ६१-६३ २ ॥

सम्पूर्ण पाक (रसोई) -से अग्रभाग निकालकर

कुण्डके समीप अग्निकोणे दो मण्डल बनाकर

एकमे अन्तर्बलि दे ओर दूसरेमें बाह्य-बलि।

प्रथम मण्डलके भीतर पूर्व दिशामें “ॐ हां

रुद्रेभ्यः स्वाहा ।'--इस मन्त्रसे रुद्रोंके लिये बलि

(उपहार) अर्पित करे। दक्षिण दिशामें "ॐ हां

मातृभ्यः स्वाहा।' कहकर मातृकाओंके लिये,

पश्चिम दिशामें “३ हां गणेभ्यः स्वाहा तेभ्योऽयं

बलिरस्तु।' ऐसा कहकर गणोंके लिये, उत्तर

दिशामें ' ॐ हां यक्षेभ्य: स्वाहा तेभ्योऽयं बलिरस्तु।'

कहकर यक्षोके लिये, ईशानकोणे "ॐ हां

ग्रहेभ्यः स्वाहा तेभ्योऽयं बलिरस्तु।' ऐसा कहकर

ग्रहोके लिये, अग्निकोणे "ॐ हां असुरेभ्यः

स्वाहा तेभ्योऽयं बलिरस्तु।' ऐसा कहकर असुरोकि

लिये, नैरऋत्यकोणमें "ॐ हां रक्षोभ्यः स्वाहा

तेभ्योऽयं बलिरस्तु।' ऐसा कहकर राक्षसोकि

तेभ्योऽयं बलिरस्तु।' ऐसा कहकर नागोकि लिये

तथा मण्डलके मध्यभागे ' ॐ हां नक्षत्रेभ्यः

स्वाहा तेभ्योऽयं बलिरस्तु' ऐसा कहकर नक्षत्रोके

लिये बलि अर्पित करे ॥ ६४--६७ #

इसी तरह ॐ हां राशिभ्यः स्वाहा तेभ्योऽयं

अलिरस्तु।' ऐसा कहकर अग्निकोणमें राशियोंके

लिये, '३» हां विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा तेभ्योऽयं

बलिरस्तु।' ऐसा कहकर नैरऋत्यकोणमें विश्वेदेवोंके

लिये तथा * ॐ हां क्षेत्रपालाय स्वाहा तस्मा अयं

बलिरस्तु।' ऐसा कहकर पश्चिमम क्षेत्रपालको

बलि दे॥६८॥

तदनन्तर दूसरे बाह्या-मण्डलमें पूर्व आदि

दिशाओंके क्रमसे इन्द्र, अग्नि, यम, निर्क्रति,

जलेश्वर वरुण, वायु. धनरक्षक कुबेर तथा ईशानके

लिये बलि समर्पित करे। फिर ईशानकोणे ' ॐ

ब्रह्मणे नमः स्वाहा ।' कहकर ब्रह्मके लिये तथा

नैर्ऋत्यकोणमें ' ॐ विष्णवे नमः स्वाहा ।* कहकर

भगवान्‌ विष्णुके लिये बलि दे। मण्डलसे बाहर

काक आदिके लिये भी बलि देनी चाहिये।

आन्तर और बाह्य-दोनों बलियोंमें उपयुक्त

होनेवाले मन्‍्त्रोंको संहारमुद्राके दारा अपने-आप

लिये, वायव्यकोणमें ' ॐ हां नागेभ्य: स्वाहा | समेट ले॥ ६९-७१॥

इस प्रकार आदि आम्नेय महापूर्णं 'ज्िक्पूजाके अक्भभूत होमकी विधिका विरूपण” नामक

प्रचहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ७५ ॥

छिहतत्तरवाँ अध्याय

चण्डकी पूजाका वर्णन

महादेवजी कहते हैँ-- स्कन्द! तदनन्तर | हुए इष्टदेवको अर्घ्यं निवेदन करे। तत्पश्चात्‌

शिवविग्रहके निकट जाकर साधक इस प्रकार | पूर्ववत्‌ पूजन तथा स्तोत्रोंद्वारा स्‍्तवन करके प्रणाम

प्रार्थना करे--' भगवन्‌! मेरे द्वारा जो पूजन और | करे तथा पराङ्मुख अर्घ्यं देकर कहे--' प्रभो! मेरे

होम आदि कार्य सम्पन्न हुआ है, उसे तथा उसके | अपराधोंको क्षमा करें।' ऐसा कहकर दिव्य नाराचमुद्र

पुण्यफलको आप ग्रहण करे ।' ऐसा कहकर, | दिखा "अस्राय फट्‌' का उच्चारण करके समस्त

स्थिरचित्त हो "उद्धव" नामक मुद्रा दिखाकर | संग्रहका अपने-आपमें उपसंहार करनेके पश्चात्‌

अर्घ्यजलसे 'नम: ' सहित पूर्वोक्त मूल-मन्त्र पदते | शिवलिङ्गको मूर्ति-सम्बन्धी मन््रसे अभिमन्त्रित

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