अँगूठी ले लो'॥ १--९॥
सीताजीने अँगूठी ले ली। उन्होंने वृक्षपर बैठे
हुए हनुमानूजीको देखा। फिर हनुमानजी वृक्षसे
उतरकर उनके सामने आ बैठे, तब सीताने उनसे
कहा--' यदि श्रीरघुनाथजी जीवित हैं तो वे मुझे
यहाँसे ले क्यों नहीं जाते ?' इस प्रकार शङ्का
करती हुई सीताजीसे हनुमानूजीने इस प्रकार
कहा--'देवि सीते! तुम यहाँ हो, यह बात
श्रीरामचन्द्रजी नहीं जानते। मुझसे यह समाचार
जान लेनेके पश्चात् सेनासहित राक्षस रावणकों
मारकर वे तुम्हें अवश्य ले जायँगे। तुम चिन्ता न
करो। मुझे कोई अपनी पहचान दो।' तब
सीताजीने हनुमानूजीको अपनी चूडामणि उतारकर
दे दी और कहा--' भैया! अब ऐसा उपाय करो,
जिससे श्रीरघुनाथजी शीघ्र आकर मुझे यहाँसे ले
चलें। उन्हें कौएकी आँख नष्ट कर देनेवाली
घटनाका स्मरण दिलाना; [आज यहीं रहो] कल
सबेरे चले जाना; तुम मेरा शोक दूर करनेवाले
हो। तुम्हारे आनेसे मेरा दुःख बहुत कम हो गया
है।' चूड़ामण और काकवाली कथाको पहचानके
रूपमे लेकर हनुमान्जीने कहा-' कल्याणि ! तुम्हारे
पतिदेव अब तुम्हें शीघ्र ही ले जायँगे। अथवा
यदि तुम्हें चलनेकी जल्दी हो, तो मेरी पीठपर
मिलाया। उस समय रावणने पूछा--'तू कौन
है?' तब हनुमानूजीने राबणको उत्तर दिया--' मैं
श्रीरामचन्द्रजीका दूत हूँ। तुम श्रीसीताजीको
श्रीरघुनाथजीकी सेवामें लौटा दो; अन्यथा
लङ्कानिवासी समस्त राक्षसोंके साथ तुम्हें श्रीरामके
बाणोंसे घायल होकर निश्चय ही मरना पड़ेगा।'
यह सुनकर रावण हनुमानूजीको मारनेके लिये
उद्यत हो गया; किंतु विभीषणने उसे रोक दिया।
तब रावणने उनकी पूँछमें आग लगा दी।
पूछ जल उठी। यह देख पवनपुत्र हनुमान्जीने
राक्षसोंकी पुरी लङ्काको जला डाला और सीताजीका
पुनः दर्शन करके उन्हें प्रणाम किया। फिर
समुद्रके पार आकर अङ्गद आदिसे कहा--' मैंने
सीताजौका दर्शन कर लिया है ।' तत्पश्चात् अद्भद
आदिके साथ सुग्रीवके मधुवने आकर, दधिमुख
आदि रक्षकोंको परास्त करके, मधुपान करनेके
अनन्तर वे सब लोग श्रीरामचनद्रजीके पास
आये ओर बोले -' सीताजीका दर्शन हो गया ।'
श्रीरामचन्द्रजीने भी अत्यन्त प्रसन्न होकर हनुमानूजीसे
पूछा--॥ १६--२४॥
श्रीरामचन्द्रजी बोले-- कपिवर ! तुम्हें सीताका
दर्शन कैसे हुआ? उसने मेरे लिये क्या संदेश
बैठ जाओ मैं आज ही तुष श्रीराम और सुग्रीवके | दिया है? मैं विरहकी आगमें जल रहा हूँ। तुम
दर्शन कराकँगा।' सीता बोलीं-- नहीं, श्रीरघुनाथजी
ही आकर मुझे ले जाये!॥ १०--१५३॥
तदनन्तर हनुमानूजीने रावणसे मिलनेकी युक्ति
सोच निकाली। उन्होंने रक्चकोको मारकर उस
वारिकाको उजाड़ डाला। फिर दाँत ओर नख
आदि आयुधोंसे वहाँ आये हुए रवणके समस्त
सेवकॉको मारकर सात मन्त्रिकुमारों तथा रावणपुत्र
सीताकी अमृतमयी कथा सुनाकर मेरा संताप
शान्त करो ॥ २५॥
नारदजी कहते हैं-- यह सुनकर हनुमान्जीने
रघुनाथजीसे कहा--' भगवन्! मैं समुद्र लाँघकर
लङ्काम गया था। वहाँ सीताजीका दर्शन करके,
लङ्कापुरीको जलाकर यहाँ आ रहा हूँ। यह
सीताजीकी दी हुई चूडामणि लीजिये। आप शोक
अक्षयकुमारको भी यमलोक पहुँचा दिया। तत्पश्चात् | न करें; रावणका वध करनेके पश्चात् निश्चय
इन्द्रजित्ने आकर उन्हें नागपाशसे बाँध लिया और
ही आपको सीताजीकी प्राप्ति होगी।' श्रीरामचन्द्रजी