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य 3 3

युद्धप्रपितामहेभ्यः स्वधा । ॐ हां मातृभ्यः स्वधा । | हां ग्रहेभ्यः स्वधा। ॐ हां रक्षोभ्यः स्वधा ।'--इन

ॐ हां मातामहेभ्यः स्वधा । ॐ हां प्रमातामहेभ्यः | वाक्योको पढ़ते हुए क्रमशः पितरो, पितामहो,

स्वधा। ॐ हां बृद्धप्रमातामहेभ्य: स्वधा । ॐ हां | वृद्धप्रपितामहों, माताओं, मातामहों, प्रमातामह,

सर्वेभ्यः पितृभ्यः स्वधा। ॐ हां सर्वेभ्यः ज्ञातिभ्यः | वृद्धप्रमातामहों, सभी पितरो, सभी ज्ञातिजनों,

स्वधा। ॐ हां सर्बाचार्येभ्य: स्वधा। ॐ हां | सभी आचार्यो, सभी दिशाओं, दिक्पतियों, सिद्धो,

दिग्भ्यः स्वधा। ॐ हां दिक्यतिभ्यः स्वधा । ॐ | मातृकाओं, ग्रहों और राक्षसोंको जलाञ्जलि

हां सिद्धेभ्यः स्वधा। ॐ हां मातृभ्यः स्वधा । ॐ | दे ॥ ४७ -५१॥

इस प्रकार आदि अग्नेय महापुराणमें "स्नान आदिकी विधिका वर्णन” नामक

बहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ७२ #

व)

तिहत्तरवाँ अध्याय

सूर्यदेवकी पूजा-विधिका वर्णन

महादेवजी कहते हैं-- स्कन्द ! अब मैं करन्यास

और अद्गन्यासपूर्वक

बताऊँगा। “मैं तेजोमय सूर्य हूँ'--ऐसा चिन्तन

करके अर्घ्य-पूजन करें। लाल रंगके चन्दन या

रोलौसे मिश्रित जलको ललाटके निकटतक ले

जाकर उसके द्वारा अर्घ्यपात्रको पूर्ण करे। उसका

गन्धादिसे पूजन करके सूर्यके अन्जोंद्वारा रक्षावगुण्ठन

करे। तत्पश्चात्‌ जलसे पूजा-सामग्रीका प्रोक्षण

करके पूर्वाभिमुख हो सूर्यदेवकी पूजा करे। ॐ

आं हृदयाय नमः ।' इस प्रकार आदिमें स्वर-बौज

लगाकर सिर आदि अन्य सब अङ्गम भी न्यास

करे । पूजा-गृहके द्वारदेशमें दक्षिणकी ओर 'दण्डी '

का और वामभागमें 'पिङ्गल' का पूजन करे।

ईशानकोणमें “गं गणपतये नमः।' इस मन्त्रसे

“गणेश' की और अग्निकोणमें गुरुकी पूजा करे।

पीठके मध्यभागमें कमलाकार आसनका चिन्तन

एवं पूजन करे ! पीठके अग्नि आदि चारों कोणोंमें

क्रमश: विमल, सार, आराध्य तथा परम सुखकी

और मध्यभागमें प्रभूतासनकी पूजा करे। उपर्युक्त

प्रभूत आदि चारोंके वर्ण क्रमश: श्वेत, लाल, पीले

और नीले हैं तथा उनकी आकृति सिंहके समान

है। इन सबकी पूजा करनी चाहिये ॥ १--५॥

पीठस्थ कमलके भीतर 'रां दीप्तायै नमः।'

पूजनकी विधि | इस मन्त्रद्वारा दीप्ताकी, "रीं सूक्ष्मायै नमः।' इस

मन्त्रसे सूक्ष्माकी, "रू जयायै नम:।' इससे जयाकी,

^ भद्रायै नमः।' इससे भद्राकी, 'रैं विभूतये

नमः।' इससे विभूतिकी, "रों विमलायै नमः।'

इससे विमलाकी, "रौ अमोधायै नमः।' इससे

अमोधाकी तथा "रं विद्युतायै नमः।' इससे विद्युताकी

पूर्वं आदि आठों दिशाओंमें पूजा करे और मध्य-

भागमें "रः सर्वतोमुख्यै नमः।' इस मन््रसे न्वी

पीठशक्ति सर्वतोमुखीकी आराधना करे । तत्पश्चात्‌

* ॐ ब्रह्मविष्णुशिवात्मकाय सौराय योगपीठात्मने

नपः।' इस मन्त्रके द्वारा सूर्यदेवके आसन (पीठ) -

का पूजन करे। तदनन्तर ` खखोल्काय नमः।'

इस षडक्षर मन्त्रके आरम्भे ' ॐ हं खं ' जोड़कर

नौ अक्षरोसे युक्त ("ॐ हं खं खखोल्काय

नम: ।'--इस) मन्त्रद्वारा सूर्यदेवके विग्रहका आवाहन

करे। इस प्रकार आवाहन करके भगवान्‌ सूर्यकी

पूजा करनी चाहिये॥६--७ ‡ ॥

अञ्जलिम लिये हुए जलको ललाटके निकटतक

ले जाकर रक्त वर्णवाले सूर्यदेवका ध्यानं करके

उन्हें भावनाद्रारा अपने सामने स्थापित करे । फिर

“हां हीं सः सूर्याय नमः।' ऐसा कहकर उक्त

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