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*श्रायन्ती०' आदि मन्त्रसे श्री-प्रतिमाको
शय्यापर शयन करावे। फिर श्रीसूक्तसे संनिधीकरण
करे और लक्ष्मी (श्री) बीज (श्रीं)-से चित्-
शक्तिका विन्यास करके पुनः अर्चना करे। इसके
बाद श्रीसूक्तसे मण्डपस्थ कुण्डोंमें कमलों अथवा
करवीर-पुष्पोंका हवन करे। होमसंख्या एक
हजार या एक सौ होनी चाहिये। गृहोपकरण
आदि समस्त पूजन-सामग्री आदितः श्रीसूक्तके
मन्त्रोंसे ही समर्पित करे। फिर पूर्ववत् पूर्णरूपसे
प्रासाद-संस्कार सम्पन्न करके माता लक्ष्मौके
नच्च
लिये पिष्डिका-निर्माण करे। तदनन्तर उस
पिण्डिकापरं लक्ष्मीकौ प्रतिष्ठा करके श्रीसूक्तसे
संनिधीकरण करते हुए, पूर्ववत् उसकी प्रत्येक
ऋचाका जप करे ॥ ९--१२॥
मूल-मन्त्रसे चित्-शक्तिको जाग्रत् करके पुनः
संनिधीकरण करे । तदनन्तर आचार्य और ब्रह्मा
तथा अन्य ऋत्विज ब्राह्मणोंको भूमि, सुवर्ण,
वस्त्र, गौ एवं अनादिका दान करे । इस प्रकार
सभी देवियोंकी स्थापना करके मनुष्य राज्य और
स्वर्ग आदिका भागी होता है ॥ १३-१४॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें "लक्ष्मी आदि देवियॉोंकी प्रतिशाके सामान्य विधानका वर्णन“
नामक बासठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥६२॥
दि
तिरसठवाँ अध्याय
विष्णु आदि देवताओंकी प्रतिष्ठाकी सामान्य विधि तथा पुस्तक-लेखन-विधि
श्रीभगवान् कहते हैं-- इस प्रकार विनतानन्दन
गरुड, सुदर्शनचक्र, ब्रह्मा और भगवान् नृसिंहकी
प्रतिष्ठा भी उनके अपने-अपने मन्त्रसे श्रीविष्णुकी
ही भाँति करनी चाहिये; इसका श्रवण करो॥ १॥
"ॐ सुदर्शन महाचक्र शान्त दुष्ट भयंकर,
छिन्धिच्छिन्धि भिन्धि भिन्धि विदारय विदारय
परमन्रान् ग्रस ग्रस भक्षय भक्षय भूतांस्त्रासय
त्रासय हुँ फट् सुदर्शनाय नमः ।'
इस मन्तरसे चक्रका पूजनं करके वीर् पुरुष
युद्धक्षेत्रे शत्र्ओंको विदीर्ण कर् डालता है ॥ २-३॥
"ॐ क्षौ नरसिंह उग्ररूप ज्वल ज्वल प्रज्वल
प्रज्वल स्वाहा ।'
यह नरसिंहभगवान्का मन्त्र है। अब मैं तुमको
पाताल-नृसिंह-मन्त्रका उपदेश करता हूँ -- ॥ ४-५ ॥
"ॐ क्षौ नमो भगवते नरसिंहाय प्रदीप्तसूर्य-
कोटिसहस्रसमतेजसे वद्रनखदंष्युधाय स्फुटविकट-
सर्वमन्रोत्तारणाय एटोहि भगवनरसिंह पुरुष परापर
ब्रह्म सत्येन स्फुर स्फुर विचृम्भ विजृम्भ
आक्रम आक्रम गजं गर्जं मुञ्च मुझ सिंहनादं
विदारय विदारय विद्रावय विद्राबयाऽऽविशाऽऽविश
सर्वमन्त्ररूपाणि मन््रजातींश्च हन हन
च्छिन्दच्छिन्द संक्षिप संक्षिप दर दर दारय
दारय स्फुट स्फुट स्फोटय स्फोटय
ज्वालामालासंघातमय सर्वतोऽनन्तस्वालावनत्राशनि-
चक्रेण सर्वपातालानुत्सादयोत्सादय
सर्वतोऽनन्तज्वालावत्रशरपञ्चरेण सर्व-
पातालान्परिवारय परिवारय सर्वपातालासुरवासिनां
हदयान्याकर्षयाऽऽकर्षय शीघ्रं टह दह पच पच
मथ मथ शोषय शोषय निकृन्तय निकृन्तय
तावद्यावन्मे वशमागताः पातालेभ्यः ( फट्सुरेभ्यः
फण्मन्ररूपेभ्यः फणमन्त्रजातिभ्य: फट् संशयान्मां
भगवननरसिंहरूप विष्णो सर्वापद्भ्यः)
सर्वमच्ररूपेभ्यो रक्ष रक्ष हुँ फण्नमो नमस्ते॥ ६॥
यह श्रीहरिस्वरूपिणी नृसिंह-विद्या है, जो
अर्थसिद्धि प्रदान करनेवाली है। त्रैलोक्यमोहन