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कुण्ड एवं अक्षपात्र लिये रहती हैं। उनका वाहन

हंस है। शंकरप्रिया पार्वती वृषभपर आरूढ होती

है। उनके दाहिने हाथोंमें धनुष-बाण और बायें

हाथोंमें चक्र-धनुष शोभित होते हैं। कौमारी

शक्ति मोरपर आरूढ होती है। उसकी अङ्गकान्ति

लाल है। उसके दो हाथ हैं और वह अपने

हाथोंमें शक्ति धारण करती है॥ १५-१९॥

लक्ष्मी (वैष्णवी शक्ति) अपने दार्ये हाथोंमें

चक्र और शङ्खं धारण करती हैं तथा बायें हाथोंमें

गदा एवं कमल लिये रहती हैं। वाराही शक्ति

भैंसेपर आरूढ होती है। उसके हाथ दण्ड, शक्ल,

चक्र और गदासे सुशोभित होते हैं। ऐन्द्री शक्ति

ऐरावत हाथीपर आरूढ होती है। उसके सहस्र

नेत्र हैं तथा उसके हाथोंमें वज्र शोभा पाता है।

ऐन्द्री देवी पूजित होनेपर सिद्धि प्रदान करनेवाली

हैं। चामुण्डाकी आँखें वृक्षके खोखलेकी भाँति

गहरी होती हैं। उनका शरीर मांसरहित-कंकाल

दिखायी देता है। उनके तीन नेत्र हैं। मांसहीन

शरीरमें अस्थिमात्र ही सार है। केश ऊपरकी ओर

उठे हुए हैं। पेट सटा हुआ है। वे हाथीका चमड़ा

पहनती हैं। उनके जायें हाथोंमें कपाल और

पट्टिश है तथा दाये हाथोंमें शूल और कटार। वे

शवपर आरूढ़ होती और हड्डियोंके गहनोंसे अपने

शरीरको विभूषित करती हैं॥२०--२२ ३॥

विनायक (गणेश)-की आकृति मनुष्यके समान

है; किंतु उनका पेट बहुत बड़ा है। मुख हाथीके

समान है और सूंड लंबी है। वे यज्ञोपवीत धारण

करते हैं। उनके मुखकी चौड़ाई सात कला है

और सूँड़की लंबाई छत्तीस अङ्गुल । उनकी नाड़ी

(गर्दनके ऊपरकी हड्डी) बारह कला विस्तृत

और गर्दन डेढ़ कला ऊँची होती है। उनके

कण्ठभागकी लंबाई छत्तीस अङ्गुल है और

गुह्यभागका घेरा डेढ़ अङ्गुल । नाभि और ऊरुका

विस्तार बारह अङ्गुल है। जाँघों और पैरोंका भी

यही माप है। वे दाहिने हाथोंमें गजदन्त और

फरसा धारण करते हैं तथा बायें हाथोंमें लड्डू एवं

उत्पल लिये रहते हैं॥ २३-२६॥

स्कन्द स्वामी मयूरपर आरूढ हैं। उनके

उभय पारे सुमुखी और विडालाक्षी मातृका

तथा शाख और विशाख अनुज खड़े है । उनके दो

भुजाएँ हैं। वे बालरूपधारी हैं। उनके दाहिने

हाथमें शक्ति शोभा पाती है और बायें हाथमें

कुक्कुट । उनके एक या छः मुख बनाने चाहिये।

गाँवमें उनके अर्चाविग्रहको छः अथवा बारह

भुजाओंसे युक्त बनाना चाहिये, परंतु बनमें यदि

उनकी मूर्ति स्थापित करनी हो तो उसके दो ही

भुजाएँ बनानी चाहिये। कौमारी-शक्तिकी छहों

दाहिनी भुजाओंमें शक्ति, बाण, पाश, खड्ग, गदा

और तर्जनी (मुद्रा)-ये अस्त्र रहने चाहिये और

छः बायें हाथोंमें मोरपंख, धनुष, खेट, पताका,

अभयमुद्रा तथा कुक्कुट होने चाहिये । रुद्रचर्चिका

देवी हाथीके चर्म धारण करती है । उनके मुख

और एक पैर ऊपरकी ओर उठे है । वे बायें-दायें

हाथोंमें क्रमशः कपाल, कर्तरी, शूल ओर पाश

धारण करती हैं। वे ही देवी -' अष्टभुजा 'के

रूपमे भी पूजित होती हैँ ॥ २७-३१॥

मुण्डमाला और डमरूसे युक्त होनेपर वे ही

*रुद्रचामुण्डा' कही गयी हैँ । वे नृत्य करती हैं,

इसलिये ' नाट्ये श्वरी" कहलाती हैं। ये ही आसनपर

बैठी हुई चतुर्मुखी 'महालक्ष्मी' (कौ तामसी

मूर्ति) कही गयी हैं, जो अपने हाथोंमें पड़े हुए

मनुष्यों, घोड़ों, भैंसों और हाथियोंको खा रही

हैं। 'सिद्धचामुण्डा' देवीके दस भुजाएँ और तीन

नेत्र हैं। ये दाहिने भागके पाँच हाथोंमें शस्त्र,

खड्ग तथा तीन डमरू धारण करती हैं और बायें

भागके हाथोंमें घण्टा, खेटक, खट्वाङ्ग, त्रिशूल

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